देहरादून,उत्तराखंड में नियुक्तियों पर भ्रष्टाचार के यूं तो एक से बढ़कर एक मामले सामने आ रहे हैं, लेकिन ताजा मामला इनसे कुछ अलग चौकाने वाला है. आरटीआई एक्टिविस्ट विकेश नेगी ने दावा किया है कि प्रदेश में करीब 150 से 200 कर्मचारी फर्जी नियुक्ति के बल पर पिछले 23 सालों से तैनाती दे रहे हैं.।। मजे की बात यह है कि शासन में सचिव आबकारी इस मामले पर कर्मचारियों का ब्यौरा जुटाने और नियमों की जानकारी लेने की बात कह रहे हैं. यह हाल तब है जब इन कर्मचारियों को सरकारी सेवा में तैनाती देते हुए करीब 23 साल हो चुके हैं..
बावजूद इसके उत्तराखंड अलग राज्य बनने के बाद इतनी बड़ी संख्या में उर्दू अनुवादक उत्तराखंड के विभिन्न विभागों में काम करते रहे।
उत्तराखंड में उर्दू अनुवादक सबसे ज्यादा पुलिस विभाग में तैनात है इसके अलावा आबकारी और जिला अधिकारी कार्यालयों में भी उनके द्वारा सेवाएं दी जा रही है। विकेश नेगी कहते हैं कि पुलिस महानिदेशक कार्यालय की तरफ से 52 ऐसे कर्मचारियों की सूची दी गई है इसी तरह वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के कार्यालय और जिलाधिकारी कार्यालय से भी सूची दी गई हैं जिसमें सीधे तौर पर 1996 में इनकी सेवाएं खत्म होने की जानकारी से जुड़ा पत्र भी दिया गया है लेकिन हैरानी की बात यह है कि इसके बावजूद यह कर्मचारी अब भी काम कर रहे हैं। विकेश नेगी कहते हैं कि राज्य का कार्मिक विभाग और वित्त विभाग इस मामले पर क्यों सोया हुआ है यह समझ से परे है इतना ही नहीं लाखों रुपए का धन का दुरुपयोग इनकी तैनाती के रूप में किया जा रहा है लेकिन इस पर कोई भी संज्ञान लेने को तैयार नहीं। वह कहते हैं कि यह मामला बेहद गंभीर है क्योंकि इसमें बिना बड़े अधिकारियों की मिलीभगत से इस तरह कर्मचारियों को नहीं रखा जा सकता विकेश नेगी ने कहा कि इनमें कई उर्दू अनुवादक तो ऐसे हैं जिनको वेतन वृद्धि के साथ प्रमोशन का फायदा दे दिया गया है, कुछ उर्दू अनुवादक प्रशासनिक अधिकारी तो कुछ इस्पेक्टर पद तक प्रमोशन के बाद पहुंच चुके हैं। उधर कुछ कर्मचारी द्वारा कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया जहां से उनकी अपील खारिज हो चुकी है।
इस मामले को लेकर जब आबकारी विभाग के सचिव हरीश चंद्र सेमवाल से बातचीत की गई तो उन्होंने कहा कि उनके संज्ञान में अभी यह मामला आया है और उन्होंने आबकारी आयुक्त कार्यालय से इन कर्मचारियों की नियुक्ति से जुड़े नियमों की जानकारी मांगी है यही नहीं कर्मचारियों की नियुक्ति किन सेवा शर्तों के साथ की गई इसकी भी जानकारी मांगी गई है।
आबकारी आयुक्त का यह बयान अपने आप में काफी चौंकाने वाला है क्योंकि जिन कर्मचारियों को नौकरी करते हुए 23 साल बीत चुके हैं उन पर अब भी विभाग को स्थिति स्पष्ट नहीं है, यह तब है जब इन कर्मचारियों की नियुक्ति को लेकर कई बार मुख्यमंत्री दरबार तक भी शिकायत हो चुकी है लेकिन ना तो उन कर्मचारियों की नियुक्ति को कानूनी रूप से सही बताया गया है और ना ही गलत।