हरिद्वार भूमि घोटाले में मास्टरमाइंड को लेकर सोशल मीडिया ग्रुप पर चर्चाएं करने वाले क्यों हुए शांत ? कहीं कुछ तो हुआ है…..!

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प्रदेश में चर्चित हरिद्वार भूमि घोटाले ने जहां शासन-प्रशासन में खलबली मचाई है, वहीं पिछले दिनों इस घोटाले को लेकर सोशल मीडिया पर भी बहस चलती रही। मामले में दो आईएएस अधिकारियों समेत कई अन्य अफसरों के नाम सामने आने के बाद सरकार ने सख्त रुख अपनाते हुए कार्रवाई की थी, लेकिन इस कार्रवाई के समानांतर सोशल मीडिया ग्रुप पर जिस ‘मास्टरमाइंड’ की चर्चा ने जोर पकड़ा था, वह अब रहस्यमयी मोड़ ले चुकी है।
सूत्रों की मानें तो जैसे ही घोटाले का पर्दाफाश हुआ, सोशल मीडिया के कुछ खास ग्रुपों में एक व्यक्ति विशेष को ‘मास्टरमाइंड’ बताया जाने लगा। इस व्यक्ति का नाम न तो आधिकारिक रूप से सामने आया और न ही किसी जांच एजेंसी की ओर से पुष्टि हुई, लेकिन कुछ ग्रुपों में उस व्यक्ति को लेकर इतने मजबूत दावे किए गए जैसे कि पूरा घोटाला उसी की देन हो। यह सिलसिला तब तक चला जब तक की कुछ प्रभावशाली लोगों की उससे मुलाकात नहीं हो गई।

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बताया जा रहा है कि जिस व्यक्ति का नाम उछाला गया, उसने न सिर्फ अपनी स्थिति स्पष्ट की बल्कि कुछ तथ्यों के साथ अपना पक्ष भी रखा। इसके बाद धीरे-धीरे वही लोग जो पहले उसे घोटाले का मास्टरमाइंड बता रहे थे, अब खामोश हो गए और कुछ तो उससे नजदीकियां भी बढ़ाने लगे। अब स्थिति यह है कि कल तक जो लोग सोशल मीडिया पर उसके खिलाफ पोस्ट कर रहे थे, आज निजी बैठकों में उसके साथ दिखाई दे रहे हैं। इससे यह सवाल उठ खड़ा हुआ है कि कहीं यह ‘मास्टरमाइंड’ की थ्योरी महज भ्रम फैलाने के लिए तो नहीं थी?

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इस घटनाक्रम से यह भी स्पष्ट होता है कि कैसे सोशल मीडिया पर बिना किसी ठोस प्रमाण के किसी व्यक्ति को निशाना बनाना आम बात हो गई है। चर्चा यह भी है कि इस ‘मास्टरमाइंड’ शब्द का इस्तेमाल जानबूझकर कुछ लोग कर रहे थे ताकि असली दोषियों से ध्यान भटकाया जा सके या किसी व्यक्तिगत रंजिश का बदला लिया जा सके।

विशेषज्ञ मानते हैं कि ऐसे संवेदनशील मामलों में सोशल मीडिया पर फैलाई गई अफवाहें न केवल जांच को प्रभावित कर सकती हैं, बल्कि किसी निर्दोष व्यक्ति की छवि को भी नुकसान पहुंचा सकती हैं। यह मामला इस बात का उदाहरण है कि अफवाहों और वास्तविकता के बीच की रेखा कितनी धुंधली हो सकती है।

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फिलहाल, भूमि घोटाले की जांच सरकार की निगरानी में जारी है और जिन अधिकारियों के नाम इसमें सामने आए हैं, उनके खिलाफ जांच एजेंसियां सबूतों के आधार पर कार्यवाही कर रही हैं। जनता की निगाहें अब इस बात पर टिकी हैं कि असली दोषियों को कब तक न्याय के कटघरे में लाया जाएगा।

मामले में मास्टरमाइंड की चर्चा अब चाहे धीमी पड़ गई हो, लेकिन यह सवाल जरूर उठता है कि जब तक जांच पूरी न हो, तब तक सोशल मीडिया ट्रायल से बचना ही समझदारी है।