देहरादून, राज्य का स्वास्थ्य विभाग अपने कारनामों को लेकर हमेशा से ही चर्चाओं में रहता है ताजा मामला श्रीनगर में स्थापित होने वाली कैथ लेब का है जहां पर डॉक्टर भले ही ना हो लेकिन अधिकारियों ने करोड़ों रुपए की लागत से कैथ लेब लगाने के लिए पूरा प्रबंध कर लिए हैं जो बताता है कि सरकारी धन की किस प्रकार से बंदर बांट की जा रही है।श्रीनगर में कैथ लेब स्थापित हो इसको लेकर अधिकारियों ने एड़ी चोटी का जोर लगा दिया है दरअसल श्रीनगर मेडिकल कॉलेज में भले ही अभी कार्डियोलॉजिस्ट की तैनाती नहीं की गई है और ना ही टेक्निकल स्टाफ ही रखा गया है लेकिन कैथ लेब केसे स्थापित हो इसके लिए अधिकारियों ने प्रबंध पूरा कर लिया गया है दून में तैनात कार्डियोलॉजिस्ट भले ही दून में आने वाले मरीजों का शत प्रतिशत इलाज न कर पा रहे हो लेकिन वह श्रीनगर में भी लोगों को हार्ट संबंधित बीमारियों का उपचार देंगे जो बताता है कि अधिकारी पैसा ठिकाने के लिए प्रबंधन किस प्रकार से करते हैं चिकित्सा शिक्षा निदेशक आशुतोष सयाना ने बताया कि कैथ लेब के लिए तमाम प्रक्रिया पूरी कर ली गई है लेकिन डॉक्टर के तैनाती को लेकर उनके पास कोई ठोस जवाब नहीं था।। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि राज्य का प्रबंधन कितने बेहतर हाथों में है दरअसल डॉक्टर और कैथ लेब में पहले जरूरी क्या है इस बात का जवाब तक भी उनके पास नहीं था।। भला अधिकारी जब मशीन को लेकर ठोस व्यवस्था ही नहीं बना पा रहे है तो फिर मशीन चलेगी केसे??एक तरफ़ सरकार फ़िज़ूल खर्ची से बचने की नसीहत दे रही है तो वही चिकित्सा शिक्षा विभाग मुलाजिमों की नियुक्ति से पहले मशीन ख़रीदने को आमादा है और अधिकारी मशीन ख़रीदने के लिए अनोखे आदेश भी कर रहे है जिससे सरकार को लगभग 8 करोड़ से ज़्यादा की वित्तीय हानि होना लगभग तय है राज्य के हेल्थ सिस्टम में मशीन ख़रीदने की इस कदर होड़ मची हुई कि उसे चलाने वाला ट्रेंड स्टाफ़ भले ही ना हो लेकिन मशीन ख़रीद कर साहब की कुर्सी ज़रूर बची रहेगी। मशीनों की ताबड़तोड़ हो रही खरीदारी पर यदि जांच हुई तो कई बड़े खुलासे होना भी तय है। बीजेपी की प्रदेश प्रवक्ता ने भी इस बात को स्वीकार करते हुए कहा कि पहले टेक्नीशियन और मशीन दोनों ही जरूरी है सरकार उसी का प्रबंध भी कर रही है।सूत्रों की माने तो कैथ लेब को लेकर तमाम शिकायतें भी शासन और सरकार के स्तर पर पहुंची है लेकिन उसके बावजूद भी अधिकारी उन पर गौर फरमाने को तैयार नहीं है और ना ही सरकार उन शिकायतों का संज्ञान लेने में ही कोई दिलचस्पी ले रही है। वहीं कांग्रेस की प्रदेश प्रवक्ता गरिमा दसोनी ने कहा कि सरकार खरीदारी पर ही फोकस कर रही है जो बताता है कि स्वास्थ्य विभाग की मंशा क्या है दरअसल राज्य में कार्डियोलॉजिस्ट की भारी कमी है लेकिन डाक्टर तैनात करने के बजाय अधिकारी मशीनों की खरीदारी में ज्यादा दिलचस्पी दिखा रहे हैं जो बताता है की दाल में कुछ तो काला है।
राज्य में जितनी दिलचस्पी के साथ अधिकारी मशीन खरीद रहे हैं यदि उतनी दिलचस्पी के साथ डॉक्टर की कमी को भी पूरा करते तो शायद पहाड़ों की स्वास्थ्य सेवाएं आज देश में पहले व दूसरे स्थान पर होती लेकिन अधिकारियों की दिलचस्पी मशीनों की खरीदारी में है जो बताती है कि अधिकारी खरीद फिरोख्त में कितने माहिर हैं। अब देखना होगा कि श्रीनगर में लगने वाली कैटलॉग से पहले डॉक्टर आते हैं या मशीन खरीद कर अधिकारी अपने निजी स्वार्थ की पूर्ति करते हैं।