उत्तराखंड की राजनीति में उथल-पुथल, धामी सरकार पर सवाल उठाने वालों के इरादे क्या?

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देहरादून। उत्तराखंड की सियासत में इन दिनों जबरदस्त हलचल मची हुई है। प्रदेश में लगातार बदलाव की चर्चाएं जोरों पर हैं, और इसका केंद्र हरिद्वार और गढ़वाल बना हुआ है। इन दोनों ही क्षेत्रों के नेता सरकार और संगठन को लेकर लगातार सवाल उठा रहे हैं। कभी सिस्टम को दोषी ठहराया जाता है, तो कभी संगठन की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाकर उसे कटघरे में खड़ा किया जाता है। वहीं, कई बार पूरी सरकार को ही निशाने पर लेकर सोशल मीडिया के माध्यम से एक नई बहस छेड़ दी जाती है।

अब, प्रेमचंद अग्रवाल की विदाई के बाद सियासी माहौल और गर्म हो गया है। इसे लेकर एक नया मोर्चा खोल दिया गया है, जिसका मकसद कहीं न कहीं धामी सरकार की साख को कमजोर करना भी नजर आ रहा है। खास बात यह है कि इसमें विपक्षी दलों के अलावा खुद सत्ताधारी दल के कुछ नेता भी शामिल बताए जा रहे हैं। कुछ नेताओं का यह रवैया पार्टी संगठन को भी कमजोर करने की दिशा में काम कर रहा है। यदि पार्टी हाईकमान इस पूरे घटनाक्रम पर करीब से नजर डाले, तो कई ऐसे चेहरे बेनकाब हो सकते हैं जो अब तक पर्दे के पीछे रहकर षड्यंत्र रच रहे थे।

धामी सरकार के खिलाफ मोर्चा क्यों?

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सरकार और संगठन मिलकर राज्य की विकास योजनाओं को जन-जन तक पहुंचाने का काम कर रही है। सरकार और संगठन के बीच तालमेल को लेकर कई नेता असहज महसूस कर रहे हैं। उनका मानना है कि सरकार और संगठन एकसाथ पैरेलल (समानांतर) नहीं चल सकते। इस विचारधारा को बढ़ावा देने वाले नेता ही आए दिन कोई न कोई नई बहस छेड़ देते हैं, जिससे सरकार को कमजोर करने की कोशिश की जा रही है।

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सूत्रों की मानें, तो कुछ वरिष्ठ नेता और पूर्व पदाधिकारी सरकार और संगठन के बीच मतभेद पैदा करने में लगे हुए हैं। इसके लिए वे अलग-अलग माध्यमों का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिसमें सोशल मीडिया से लेकर बंद कमरों में होने वाली गोपनीय बैठकें तक शामिल हैं। इन बैठकों में सरकार की कार्यशैली पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं, ताकि पार्टी के भीतर ही असंतोष का माहौल बनाया जा सके।

हरिद्वार और गढ़वाल क्यों हैं राजनीति के केंद्र में?

उत्तराखंड की राजनीति में हरिद्वार और गढ़वाल हमेशा से महत्वपूर्ण भूमिका निभाते आए हैं। यह दोनों ही क्षेत्र प्रदेश की राजनीति की दशा और दिशा तय करने में अहम होते हैं। हाल ही में हुए राजनीतिक घटनाक्रमों से स्पष्ट हो गया है कि इन इलाकों के कुछ नेता संगठन और सरकार दोनों से ही असंतुष्ट हैं। वे बदलाव की मांग कर रहे हैं, लेकिन इसके लिए वे सार्वजनिक मंचों के बजाय पर्दे के पीछे रहकर खेल खेल रहे हैं।

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हरिद्वार में कुछ नेताओं ने सोशल मीडिया के जरिए संगठन के खिलाफ अभियान छेड़ दिया है। वहीं, गढ़वाल के कुछ नेता सरकार के फैसलों पर सवाल उठाकर असंतोष की स्थिति उत्पन्न करने में लगे हुए हैं। उनका मानना है कि यदि वर्तमान सरकार को कमजोर किया जाता है, तो भविष्य में नए नेतृत्व के लिए रास्ता साफ हो सकता है।

पार्टी हाईकमान की भूमिका और संभावित कार्रवाई

पार्टी हाईकमान इस पूरे घटनाक्रम पर नजर बनाए हुए है। अगर हालात इसी तरह जारी रहे, तो जल्द ही कुछ बड़े फैसले लिए जा सकते हैं। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को अब यह समझ आने लगा है कि अगर अंदरूनी कलह को समय रहते नहीं रोका गया, तो आगामी चुनावों में इसका भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।

सूत्र बताते हैं कि पार्टी नेतृत्व ने पहले ही इस तरह की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए एक टीम गठित कर दी है। यह टीम लगातार उन नेताओं की पहचान कर रही है, जो संगठन या सरकार के खिलाफ बयानबाजी कर रहे हैं या अंदरूनी राजनीति कर रहे हैं। ऐसे नेताओं पर जल्द ही अनुशासनात्मक कार्रवाई हो सकती है।

सरकार और संगठन की मजबूती जरूरी

उत्तराखंड में विकास की रफ्तार बनाए रखने के लिए सरकार और संगठन का एकजुट रहना जरूरी है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में सरकार कई अहम योजनाओं पर काम कर रही है, जिसे सफल बनाने के लिए संगठन का सहयोग भी आवश्यक है। यदि सरकार और संगठन के बीच दरार उत्पन्न होती है, तो इसका सीधा असर राज्य के विकास पर पड़ेगा।

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राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यदि पार्टी के भीतर के असंतुष्ट नेताओं को नियंत्रित नहीं किया गया, तो इससे न सिर्फ सरकार कमजोर होगी बल्कि पार्टी की साख भी दांव पर लग जाएगी। पार्टी हाईकमान को जल्द से जल्द इस मुद्दे पर कार्रवाई करनी होगी, ताकि सरकार और संगठन को कमजोर करने की कोशिशें नाकाम हो सकें।

निष्कर्ष

उत्तराखंड की राजनीति इन दिनों बदलाव की आहट से गरमाई हुई है। प्रेमचंद अग्रवाल की विदाई के बाद से ही सियासी घमासान तेज हो गया है। कुछ नेता सरकार और संगठन के बीच असंतोष का माहौल बनाने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि अपने हित साधे जा सकें। लेकिन पार्टी हाईकमान इस पूरे घटनाक्रम पर पैनी नजर रखे हुए है और जल्द ही कुछ बड़े फैसले लेने की संभावना है। अब देखना होगा कि आने वाले दिनों में उत्तराखंड की राजनीति कौन सा नया मोड़ लेती है।

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