देहरादून, उत्तराखंड आबकारी विभाग का विवादों और चर्चाओं से चोली दामन का साथ हमेशा से ही रहा है आलम यह है कि विभाग कब क्या गुल खिला दे इस बात का अंदाजा तो उधमसिंह नगर में हो रहे घटनाक्रम से आसानी से लगाया जा सकता है आलम यह है कि पहले शराब के ट्रैक्टर के साथ जखीरा पकड़ा जाता और आबकारी विभाग की कस्टडी में ही नए ट्रेक्टर को बदल भी दिया जाता है जिसके बाद जिम्मेदार अधिकारी के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया जाता है और गिरफ्तारी भी होती है इसके बाद उधम सिंह नगर में एक मामला और सामने आया जिसमें लाइसेंस धारकों के द्वारा फर्जी बैंक गारंटी बनवाकर लंबे समय तक दुकानों का संचालन किया गया लेकिन विभाग के मुलाजिम को इसकी कानों कान खबर नहीं हुई , जो संदेह पैदा करता है। यूं तो नियम और कानून में महारथ हासिल करने वाले आबकारी विभाग के मुलाजिम इतने अनजान कैसे है?? हालाकि जिला आबकारी अधिकारी फर्जी बैंक गारंटी दिए जाने के मामले को सिरे से नकार रहे है। वहीं सरकारी खजाने को लेकर विभाग कितनी संजीदगी के साथ काम कर रहे इसे भी आसानी से समझा जा सकता है।। पिछले कुछ समय से विभाग चर्चाओं और विवादों में ज्यादा रहा, जिसके चलते सिस्टम विपक्ष के निशाने पर भी आ गया यूं तो आबकारी नीति 2023– 24 को पास हुए 6 माह का समय बीत चुका है लेकिन घरों में शराब का लाइसेंस दिए जाने का मामला अब तूल पकड़ता जा रहा है ताजा मामला देहरादून से जुड़ा है जहां पर एक व्यक्ति को लाइसेंस जारी करने की प्रक्रिया अपनाई गई जिसके बाद सरकार का चौतरफा घेराव भी शुरू हो गया। आबकारी विभाग के मुलाजिमों के द्वारा किए जा रहे कारनामें महज जांच की दहलीज तक पहुंचाते हैं लेकिन अंजाम तक पहुंचना बेहद मुश्किल होता है ऐसे में आबकारी विभाग के कई मुलाजिम सरकारी खजाने को भरने में कम और निजी स्वार्थों के लिए ज्यादा दिलचस्पी दिखा रहा है।। ऐसे मुलाजिमों पर कार्रवाई करने के बजाय विभाग हिलाहवली करके ही जांच के शगूफे छोड़ने और विवादो से पल्ला झाड़ना बेहतर समझ रहा है।।
