उत्तराखंड में हाइब्रिड वाहनों के रजिस्ट्रेशन फ्री फैसले पर लग सकता है ब्रेक, कंपनियों की आपत्ति बनी रोड़ा…

ख़बर शेयर करें

देहरादून।
उत्तराखंड सरकार द्वारा हाल ही में आयोजित कैबिनेट बैठक में लिए गए एक महत्वपूर्ण फैसले पर अब पुनर्विचार की स्थिति बन गई है। राज्य सरकार ने पर्यावरण संरक्षण को ध्यान में रखते हुए हाइब्रिड वाहनों के रजिस्ट्रेशन और रोड टैक्स को फ्री करने की योजना बनाई थी। इस कदम का उद्देश्य राज्य में पर्यावरण के अनुकूल परिवहन को बढ़ावा देना और लोगों को पेट्रोल-डीजल वाहनों से दूर कर पर्यावरण हितैषी विकल्पों की ओर प्रेरित करना था। लेकिन अब सूत्रों से मिल रही जानकारी के अनुसार इस योजना पर अमल में देरी हो सकती है।

यह भी पढ़ें -  रुद्रप्रयाग में बड़ा हादसा, अलकनंदा नदी में गिरी यात्रियों से भरी बस...

दरअसल, देश की दो प्रमुख वाहन निर्माता कंपनियों ने राज्य सरकार को इस फैसले के खिलाफ अपनी आपत्ति दर्ज कराई है। इन कंपनियों का कहना है कि पूरी तरह से इलेक्ट्रिक वाहनों को रोड टैक्स से मुक्त रखना एक सराहनीय कदम है, लेकिन हाइब्रिड वाहनों को यह छूट देने से इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। कंपनियों का तर्क है कि जब हाइब्रिड वाहन भी टैक्स फ्री हो जाएंगे तो उपभोक्ताओं का झुकाव पूरी तरह इलेक्ट्रिक वाहनों के बजाय हाइब्रिड की ओर हो सकता है, जिससे इलेक्ट्रिक मोबिलिटी को बढ़ावा देने की राष्ट्रीय नीति को झटका लग सकता है।

यह भी पढ़ें -  IAS अधिकारियों की जिम्मेदारियों में हुआ फेरबदल,शासन ने किए आदेश जारी..

इस आपत्ति के बाद अब उत्तराखंड सरकार इस फैसले पर दोबारा विचार कर सकती है। संकेत मिल रहे हैं कि हाइब्रिड वाहनों को लेकर सरकार अपने पूर्व के फैसले से पीछे हट सकती है या उसमें संशोधन कर सकती है। यदि ऐसा होता है तो उन उपभोक्ताओं को निराशा हो सकती है, जिन्होंने इस छूट की घोषणा के बाद हाइब्रिड वाहन खरीदने का मन बना लिया था।

यह भी पढ़ें -  हरिराम नाई की उड़ती खबरों का कमाल, सिस्टम की चौखटों पर गूंज रही चर्चाएं....

फिलहाल इस मुद्दे पर आंतरिक चर्चा चल रही हैं और अंतिम निर्णय अगले कुछ दिनों में सामने आ सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक दोनों तकनीकों को संतुलित रूप से बढ़ावा देना जरूरी है, लेकिन नीतिगत फैसलों में प्रतिस्पर्धा और व्यावसायिक हितों को भी ध्यान में रखना पड़ता है।

यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इस फैसले पर कायम रहती है या कंपनियों की आपत्तियों को ध्यान में रखते हुए नीति में बदलाव करती है।