देहरादून। दून मेडिकल कॉलेज में खरीदारी प्रक्रिया एक बार फिर विवादों में आ गई है। हर साल स्टेशनरी, कंटिंजेंसी, सेनेटरी, क्लॉथिंग और कंप्यूटर आइटम की खरीद के लिए टेंडर प्रक्रिया की जाती है ताकि गुणवत्तापूर्ण सामान समय से उपलब्ध कराया जा सके, लेकिन इस बार की प्रक्रिया में बार-बार बदलाव और मनमर्जी ने सिस्टम की पारदर्शिता पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
जानकारी के मुताबिक, इस वर्ष दून मेडिकल कॉलेज में 7 अक्टूबर को टेंडर प्रक्रिया शुरू की गई थी। प्री-बिड मीटिंग 14 अक्टूबर को आयोजित की गई और 22 अक्टूबर को टेंडर खुलना था, लेकिन दीपावली की छुट्टियों के चलते तारीख को आगे बढ़ाकर 30 अक्टूबर कर दिया गया। कई वेंडर्स ने 29 अक्टूबर को निर्धारित प्रक्रिया के तहत अपने टेंडर दाखिल भी कर दिए थे। लेकिन लास्ट समय पर प्री-बिड में आई आपत्तियों के आधार पर शर्तों में बदलाव कर दिए गए और टेंडर की तारीख बढ़ाकर 6 नवंबर कर दी गई।
वेंडर्स ने इस अचानक किए गए बदलाव का जोरदार विरोध किया। विरोध के बाद प्रशासन ने बैकफुट पर आते हुए पुराने नियमों के हिसाब से ही टेंडर पुनः आमंत्रित करने की बात कही ताकि विवाद खत्म हो सके। लेकिन आज जब टेंडर खुलने की तारीख थी, तो एक बार फिर पुरानी प्री-बिड के अनुसार वेंडर्स द्वारा दिए गए प्रत्यावेदन के आधार पर शर्तों में फेरबदल कर दिया गया। नतीजतन, टेंडर की तारीख एक बार फिर आगे बढ़ा दी गई।
इस पूरी प्रक्रिया ने यह साफ कर दिया है कि दून मेडिकल कॉलेज में खरीदारी से जुड़ी व्यवस्था पारदर्शिता से कोसों दूर है। बार-बार नियमों में बदलाव न केवल वेंडर्स को असमंजस में डाल रहे हैं, बल्कि यह संदेह भी पैदा कर रहे हैं कि कहीं पूरी प्रक्रिया को किसी विशेष लाभार्थी के लिए तो नहीं ढाला जा रहा।
कॉलेज की प्राचार्य डॉ. गीता जैन ने स्वीकार किया कि वेंडर्स की ओर से आपत्तियां आई हैं और प्रत्यावेदन के अनुसार शर्तों में फेरबदल किया गया है। उन्होंने कहा कि संस्थान नियमों के अनुसार ही प्रक्रिया को आगे बढ़ा रहा है, ताकि भविष्य में किसी प्रकार का विवाद न हो।
वहीं, राज्य सरकार की जीरो टॉलरेंस नीति के तहत पहले ही स्पष्ट कर दिया गया है कि खरीदारी में गड़बड़ी पाए जाने पर सख्त कार्रवाई होगी। बावजूद इसके, दून मेडिकल कॉलेज में बार-बार नियमों की अनदेखी और प्रक्रिया में बदलाव यह दर्शाता है कि अधिकारी अब भी मनमानी से बाज नहीं आ रहे हैं।
इससे पहले भी कॉलेज में खरीदारी से जुड़ी कई शिकायतें शासन स्तर तक पहुंच चुकी हैं, लेकिन कार्रवाई के बजाय प्रक्रिया में नए विवाद पैदा हो रहे हैं। बार-बार बदली जा रही शर्तें और टेंडर की तारीखें अब यह बड़ा सवाल खड़ा कर रही हैं कि आखिर दून मेडिकल कॉलेज की खरीद प्रणाली किसके इशारे पर संचालित हो रही है — और क्या “जीरो टॉलरेंस” का मंत्र केवल कागज़ों में ही सीमित रह गया है?


