उत्तराखंड में आबकारी विभाग की कार्यप्रणाली एक बार फिर सवालों के घेरे में है। देहरादून और अन्य जिलों में विभागीय अधिकारियों की विवादास्पद कार्यशैली के आरोपों ने प्रदेश के प्रशासनिक ढांचे को कटघरे में खड़ा कर दिया है। कुछ माह पूर्व ही देहरादून जिले में शराब की दुकानों पर ओवर रेटिंग के मामले में विभागीय अधिकारियों की लापरवाही के आरोपों के बाद यह मामला और गरमा गया है।
देहरादून में शराब की दुकानों पर अवैध रूप से कीमतों में वृद्धि की खबरों के बाद जिलाधिकारी की नाराजगी के बाद मामले की गंभीरता को देखते हुए कैलाश चंद बिंजोला को मुख्यालय अटैच कर दिया था। हालांकि, यह कार्रवाई कुछ ही दिन चली और अब एक बार फिर बिंजोला को हरिद्वार जैसे महत्वपूर्ण जनपद का जिला आबकारी अधिकारी बनाए जाने की चर्चा जोरों पर है। यह स्थिति विभागीय कर्मचारियों के मनोबल को और भी कमजोर कर रही है, जो पहले ही इस तरह के विवादों से प्रभावित रहे हैं।
इसके अलावा, रुड़की में विजिलेंस द्वारा ट्रैप किए गए एक अन्य , निरीक्षक पंवार को हरिद्वार के सेक्टर 1 में भेजे जाने की तैयारियां पूरी की जा चुकी हैं। इस तरह के अधिकारियों को महत्वपूर्ण पदों पर तैनात करना सवालों के घेरे में है, खासकर तब जब इन अधिकारियों की छवि पहले से ही विवादों में रही हो। इससे यह सवाल उठता है कि क्या विभाग में ऐसे अधिकारियों को सिर्फ अपने प्रभाव और पहुंच के कारण उच्च पदों पर तैनाती मिल रही है?
उक्त घटनाएं न केवल उत्तराखंड के आबकारी विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाती हैं, बल्कि राज्य सरकार की प्रशासनिक व्यवस्था और नीतियों पर भी गंभीर चिंताओं को जन्म देती हैं। एक तरफ जहां सरकार भ्रष्टाचार और अवैध कार्यों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने का दावा करती है, वहीं दूसरी तरफ इन विवादित अधिकारियों को ऐसे पदों पर तैनात करना राज्य की भ्रष्टाचार विरोधी नीतियों पर एक बड़ा धब्बा लगता है।
विभागीय सूत्रों का कहना है कि यह घटनाएं विभाग में आंतरिक राजनीति और नेटवर्किंग के कारण हो रही हैं, जहां एक-दूसरे के साथ मिलकर अधिकारी अपने प्रभाव क्षेत्र का विस्तार करते हैं। देहरादून और अन्य क्षेत्रों में शराब की दुकानों पर ओवर रेटिंग के मामलों में संलिप्त अधिकारी खुद को कानूनी कार्यवाही से बचाने के लिए प्रशासनिक तंत्र का इस्तेमाल करते हैं। इससे यह साफ होता है कि विभाग में दीमक की तरह फैले हुए भ्रष्टाचार को रोकने के लिए कठोर कदम उठाने की आवश्यकता है।
उत्तराखंड के निवासियों और समाज के विभिन्न वर्गों की ओर से यह सवाल भी उठाया जा रहा है कि आखिरकार ऐसे विवादित और चर्चित अधिकारियों को क्यों महत्वपूर्ण पदों पर तैनात किया जा रहा है, जबकि इन्हें पहले ही विभागीय जांच और कानूनी प्रक्रियाओं का सामना करना पड़ा है। क्या सिस्टम के पास इन अधिकारियों की कार्यशैली पर नजर रखने के लिए कोई प्रभावी निगरानी तंत्र है?
वहीं आबकारी विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों ने इस स्थिति पर प्रतिक्रिया देने तक से बचते है, लेकिन जानकारों का मानना है कि यदि इस प्रकार की स्थिति बनी रही, तो न केवल विभाग की छवि और कार्यप्रणाली पर बुरा असर पड़ेगा, बल्कि इसका प्रभाव राज्य की प्रतिष्ठा पर भी पड़ेगा।
उम्मीद जताई जा रही है कि राज्य सरकार और आबकारी विभाग इस स्थिति पर गंभीरता से विचार करेंगे और उन अधिकारियों के खिलाफ कठोर कदम उठाएंगे जो विभाग के नियमों और कानूनों की खुलेआम अवहेलना कर रहे हैं। साथ ही, यह भी जरूरी है कि विभागीय सुधारों के लिए ठोस नीति बनाई जाए ताकि भविष्य में इस प्रकार की घटनाएं न हो सकें और प्रदेश के नागरिकों को सही और सस्ता शराब मिले।