कहीं निजी स्वार्थों के लिए तो नहीं हो रहा हरिद्वार में मेडिकल कॉलेज को पीपीपी मोड पर दिए जाने का विरोध….?

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उत्तराखंड के स्वास्थ्य शिक्षा विभाग में हाल ही में उस समय घमासान मच गया, जब हरिद्वार मेडिकल कॉलेज को पीपीपी (पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप) मोड पर देने के राज्य सरकार के निर्णय ने विभाग के भीतर हड़कंप मचा दिया। सरकार का यह कदम मुख्यत: यह सुनिश्चित करने के लिए उठाया गया था कि जनता को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं मिलें। जबकि सूत्रों किनमेन तो विभाग के कुछ अधिकारियों ने इस निर्णय का अंदरखाने विरोध किया और लोगों को भ्रमित करने का प्रयास किया, जिससे सरकार के कल्याणकारी फैसले को पलटने के लिए मजबूर किया जा सके।

पीपीपी मोड की अवधारणा

पीपीपी मोड के तहत सरकार और निजी क्षेत्र का साझेदारी मॉडल होता है, जिसमें दोनों पक्ष एक-दूसरे के संसाधनों का उपयोग करते हुए स्वास्थ्य सेवाओं को सुलभ और प्रभावी बनाते हैं। इस मॉडल के जरिए सरकारी मेडिकल कॉलेज को निजी क्षेत्र के साथ मिलकर चलाने का प्रस्ताव रखा गया था। सरकार का मानना था कि इस प्रकार की साझेदारी से मेडिकल कॉलेज में संसाधनों की कमी को दूर किया जा सकता है और स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता में भी सुधार हो सकता है।

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विभागीय अधिकारियों की भूमिका

सूत्र बताते है कि हरिद्वार मेडिकल कॉलेज को पीपीपी मोड में देने का यह निर्णय कुछ स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों को पसंद नहीं आया। जिसके चलते यह पूरा तानाबाना रचा गया, जानकारों की माने तो कुर्सी पर बने रहे इसके लिए सभी खेल खेले गए।। कुछ ने तो यह अफवाह तक फैला दी कि सरकार का यह कदम निजी कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए है, जो स्वास्थ्य क्षेत्र में एकाधिकार स्थापित कर सकती हैं।

सरकार का स्पष्ट बयान

हालांकि, इन विरोधों के बावजूद, सरकार ने स्थिति को स्पष्ट करते हुए यह घोषणा की कि हरिद्वार मेडिकल कॉलेज को केवल सरकार की शर्तों के अनुसार ही चलाया जाएगा। सरकार का कहना था कि यह निर्णय जनता के भले के लिए लिया गया है, ताकि स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार हो सके और नागरिकों को बेहतर इलाज मिल सके। सरकार ने यह भी स्पष्ट किया कि पीपीपी मोड में स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता को नियंत्रित करने के लिए कड़े मानक और निगरानी प्रक्रिया होगी।

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विभाग ने भी इस मामले में बयान दिया, जिसमें उन्होंने कहा कि “हमारे लिए यह सबसे महत्वपूर्ण है कि मेडिकल कॉलेज में गुणवत्ता वाली शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराई जाएं। पीपीपी मोड से हम सरकारी संसाधनों को बेहतर तरीके से उपयोग कर सकते हैं और ज्यादा से ज्यादा लोगों तक स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचा सकते हैं।”

विरोध के बावजूद सकारात्मक कदम

जहां कुछ लोग इस निर्णय का विरोध कर रहे थे, वहीं राज्य सरकार ने इसे एक सकारात्मक कदम के रूप में देखा। हरिद्वार मेडिकल कॉलेज को पीपीपी मोड में देने से मेडिकल कॉलेज में संसाधनों की भरपाई हो सकती है, जिससे छात्रों को बेहतर शिक्षा मिल सके और मरीजों को उच्च गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य सेवाएं प्राप्त हो सकें। इस निर्णय से सरकारी संस्थाओं में हो रही प्रशासनिक जटिलताओं को भी हल किया जा सकता है।

आखिरकार, सरकार ने इस निर्णय पर अपनी स्थिति मजबूत की और विभागीय अधिकारियों को भी यह समझाने का प्रयास किया कि निजी भागीदारी से सरकारी संस्थाओं में संसाधनों का अपव्यय कम किया जा सकता है और ज्यादा लोगों तक स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचाई जा सकती हैं।

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निष्कर्ष

हरिद्वार मेडिकल कॉलेज को पीपीपी मोड में देने का फैसला राज्य सरकार की तरफ से एक साहसिक कदम था, जो स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार की दिशा में एक नई शुरुआत हो सकती है। हालांकि, इस पर कुछ अधिकारियों और कुछ अन्य पक्षों की ओर से उठाए गए सवालों ने इस फैसले को विवादास्पद बना दिया। बावजूद इसके, सरकार ने इस फैसले को लेकर अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है और इसे जनता के भले के लिए एक कदम बताया है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि इस निर्णय से राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं में क्या सुधार आता है और क्या पीपीपी मोड में मेडिकल कॉलेज चलाने से राज्य सरकार के स्वास्थ्य लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सकेगा।