देश की सबसे बड़ी सेवा में तैनात IAS के लिए क्यों करनी पड़ी बायोमैट्रिक हाज़िरी अनिवार्य..? उत्तराखंड सचिवालय में खींची गई अनुशासन की नई लकीर..

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देहरादून। उत्तराखंड सचिवालय में एक बार फिर बायोमैट्रिक उपस्थिति प्रणाली को लेकर सख्ती शुरू हो गई है। देश की सबसे प्रतिष्ठित सेवा—भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS)—सहित सचिवालय में कार्यरत तमाम अधिकारी व कर्मचारी अब बिना बायोमैट्रिक हाज़िरी के काम नहीं कर पाएंगे। मुख्य सचिव आनंद वर्धन द्वारा जारी आदेश ने स्पष्ट कर दिया है कि 1 मई 2025 से यह व्यवस्था अनिवार्य रूप से लागू होगी। हालांकि उनके आदेश के बाद अब बायोमेट्रिक मशीनें सही की जा रही है।
शासन का यह कदम महज एक तकनीकी सुधार नहीं, बल्कि सचिवालय के कामकाज की गंभीर खामियों की ओर इशारा करता है। सवाल यह उठ रहा है कि आखिर इस व्यवस्था को सख्ती से लागू करने की जरूरत क्यों पड़ी? क्या सचिवालय में तैनात अधिकारी नियमित रूप से समय पर दफ्तर नहीं आ रहे थे? या फिर व्यवस्था के प्रति ढिलाई एक आम रवैया बन चुकी थी?
दरअसल, बायोमैट्रिक उपस्थिति को लेकर पहले भी दिशा-निर्देश जारी हो चुके हैं। वर्ष 2017 में सचिवालय प्रशासन अनुभाग-1 द्वारा जारी आदेशों के तहत सभी सेवाओं—जैसे IAS, IPS, PCS, न्यायिक सेवा, सचिवालय सेवा, वित्त सेवा और आउटसोर्स कर्मचारियों—को बायोमैट्रिक माध्यम से उपस्थिति दर्ज करना अनिवार्य किया गया था। लेकिन समय के साथ इसका अनुपालन शिथिल पड़ता गया। अधिकारी और कर्मचारी इस व्यवस्था से या तो बचते रहे या फिर सिस्टम की निगरानी में ही खामियां रहीं।
अब जब मुख्य सचिव आनंद वर्धन ने इस पर दोबारा सख्त रुख अपनाया है, तो यह स्पष्ट संकेत है कि शासन अब सचिवालय में अनुशासनहीनता और कार्य संस्कृति की ढिलाई को बर्दाश्त नहीं करेगा। आदेश में कहा गया है कि सभी कार्मिकों को प्रत्येक कार्य दिवस में निर्धारित समयावधि के भीतर अपनी उपस्थिति अनिवार्य रूप से दर्ज करनी होगी, अन्यथा उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा सकती है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि यह निर्णय शासन की जवाबदेही और पारदर्शिता को बढ़ाने की दिशा में एक बड़ा कदम है। सचिवालय, जो राज्य के प्रशासन का मस्तिष्क है, वहां कार्य संस्कृति में लापरवाही का असर पूरे सरकारी तंत्र पर पड़ता है। ऐसे में बायोमैट्रिक उपस्थिति व्यवस्था एक प्रभावी उपकरण साबित हो सकता है। हालांकि, यह भी जरूरी है कि इस प्रणाली की निगरानी और क्रियान्वयन में भी कोई कोताही न हो। तकनीकी अड़चनों को समय रहते दूर किया जाए और सभी स्तरों पर इसे गंभीरता से लिया जाए।

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मुख्य सचिव का यह आदेश सिर्फ हाज़िरी की बात नहीं करता, यह संकेत है एक नई कार्य संस्कृति के आगमन का, जिसमें उत्तराखंड सचिवालय से लेकर ब्लॉक स्तर तक जवाबदेही और कार्यप्रणाली को सुधारने की कोशिश हो रही है। अब देखना यह है कि क्या यह सख्ती धरातल पर भी असर दिखाएगी या फिर यह आदेश भी कागजों तक ही सीमित रह जाएगा?