देहरादून: उत्तराखंड में बिना किसी ठोस प्रमाण के लोगों के नाम खराब करने की प्रवृत्ति चिंता का विषय बनती जा रही है। खासतौर पर जब किसी संवेदनशील मामले को राजनीतिक रंग दिया जाता है, तो यह समाज और प्रशासन दोनों के लिए घातक साबित होता है। अंकिता भंडारी हत्याकांड इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, जिसने पूरे सिस्टम को हिला कर रख दिया था। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में सरकार ने इस मामले में त्वरित कार्रवाई करते हुए आरोपियों को सलाखों के पीछे पहुंचाया और न्याय दिलाने की पूरी कोशिश की। इसके बावजूद, राज्य की राजनीति में कुछ तत्व अब भी इस संवेदनशील मुद्दे का दुरुपयोग कर रहे हैं।
बेटियों के नाम पर राजनीति गर्म
बीते कुछ समय से राज्य में बार-बार ऐसे मामले सामने आ रहे हैं, जहां बिना किसी ठोस सबूत के लोगों के नाम बदनाम किए जा रहे हैं। खासकर जब कोई गंभीर अपराध होता है, तो उसे तथ्यों के आधार पर जांच करने के बजाय राजनीतिक फायदे के लिए तूल दे दिया जाता है। हाल ही में कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक तिलकराज बेहड़ ने विधानसभा सत्र के दौरान इस विषय पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि बिना किसी प्रमाण के किसी का नाम VIP के रूप में उछाल देना सही नहीं है।
विधानसभा में बेहड़ ने स्पष्ट किया कि जब तक किसी के खिलाफ ठोस सबूत न हो, तब तक उसका नाम घसीटना न केवल अनैतिक है, बल्कि यह किसी की छवि को धूमिल करने की साजिश भी हो सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि किसी भी मामले को तूल देने से पहले तथ्यों की जांच आवश्यक है, ताकि बेगुनाहों को झूठे आरोपों में न फंसाया जाए।
सरकार की सख्ती के बावजूद जारी है साजिश
धामी सरकार लगातार यह सुनिश्चित करने की कोशिश कर रही है कि राज्य में बेटियों की सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता रहे। धामी ने कई मंचों से यह स्पष्ट किया है कि महिलाओं के खिलाफ अपराध करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। बावजूद इसके, कुछ शरारती तत्व लगातार राज्य की शांति और सौहार्द को बिगाड़ने का प्रयास कर रहे हैं।
सरकार की ओर से लगातार सख्त निर्देश दिए जा रहे हैं कि बिना किसी ठोस सबूत के किसी पर आरोप लगाना न केवल गलत है, बल्कि इससे जांच प्रक्रिया भी प्रभावित होती है। इसके बावजूद, कुछ राजनीतिक दल और उनके समर्थक इस मुद्दे को भुनाने में लगे हैं।
आखिर कब रुकेगा यह खेल?
उत्तराखंड में यह प्रवृत्ति तेजी से बढ़ रही है कि किसी भी संवेदनशील मामले में बिना किसी ठोस प्रमाण के नाम उछाले जाते हैं और राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश की जाती है। यह सिर्फ राजनीतिक दलों तक सीमित नहीं है, बल्कि सोशल मीडिया पर भी अफवाहें तेजी से फैलती हैं, जिससे लोगों की मानसिकता प्रभावित होती है।
ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही उठता है कि आखिर कब तक राजनीतिक लाभ के लिए बेटियों की सुरक्षा और न्याय को एक साधन बनाया जाता रहेगा? सरकार और प्रशासन को चाहिए कि वह सख्त कानूनों के जरिए इस प्रवृत्ति पर लगाम लगाए और दोषियों को सख्त सजा दे, ताकि भविष्य में कोई भी व्यक्ति या समूह इस तरह की हरकत करने से पहले सौ बार सोचे।

