जब उत्तरप्रदेश से लेकर हिमाचल के नेताओं का मिल रहा संरक्षण तो कैसे होगी स्वास्थ्य विभाग के स्टोर में चल रहे खेल की जांच……

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देहरादून: उत्तराखंड के स्वास्थ्य महानिदेशालय में स्टोर सेक्शन को लेकर उठ रहे सवालों और खरीद-फरोख्त में अनियमितताओं की जांच फिलहाल ठंडी पड़ती नजर आ रही है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा खुद इस मामले में संज्ञान लेते हुए जांच के आदेश दिए गए थे, लेकिन एक महीने बाद भी न जांच आगे बढ़ी है और न ही संबंधित अधिकारी के विरुद्ध कोई कार्रवाई की गई है। यह स्थिति खुद में यह दर्शाने के लिए काफी है कि सरकार के आदेशों का असर स्वास्थ्य विभाग के कुछ अफसरों पर नहीं पड़ रहा है। मामला स्वास्थ्य महानिदेशालय के स्टोर में की जा रही खरीदारी से जुड़ा है, जिसे लेकर गंभीर शिकायतें सामने आई थीं। आरोप था कि विभिन्न उपकरणों की खरीद में भारी गड़बड़ियां की जा रही हैं। इसी आधार पर मुख्यमंत्री के आदेश के बाद स्वास्थ्य सचिव ने जांच के निर्देश जारी किए थे, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो सकी है। प्रशासनिक व्यवस्था के तहत सामान्य प्रक्रिया यह होती है कि जब किसी अधिकारी के विरुद्ध जांच की जाती है, तो सबसे पहले उसे उस पद से हटाया जाता है, ताकि निष्पक्ष जांच हो सके। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से इस मामले में एक माह बीत जाने के बाद भी न तो संबंधित अधिकारी का स्थानांतरण हुआ है और न ही जांच समिति की ओर से कोई औपचारिक रिपोर्ट सामने आई है। इससे यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर इस अधिकारी को इतनी छूट किसकी शह पर मिल रही है?सूत्रों की मानें तो इस अधिकारी के पीछे राजनीतिक पकड़ बहुत मजबूत है। उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के कुछ प्रभावशाली राजनेताओं के साथ इस अधिकारी के संबंध होने की भी चर्चा है। यही कारण है कि स्वास्थ्य विभाग का यह अफसर राज्य सरकार के आदेशों तक को नज़रअंदाज़ कर रहा है। विभागीय सूत्रों का कहना है कि यह पहला मौका नहीं है जब इस अधिकारी का नाम अनियमितताओं में आया है, लेकिन हर बार वह राजनीतिक संरक्षण के चलते जांच से बचता रहा है। इस प्रकरण को लेकर स्वास्थ्य विभाग के अंदर भी नाराजगी है। कई वरिष्ठ अधिकारियों का मानना है कि जब शीर्ष स्तर से जांच के आदेश के बाद भी कोई कार्रवाई न हो, तो इससे विभाग की छवि को धक्का लगता है। वहीं, विपक्षी दलों ने भी इस मुद्दे को लेकर सरकार पर निशाना साधना शुरू कर दिया है। उनका कहना कि जब राज्य सरकार के आदेशों का पालन तक नहीं हो रहा, तो यह साफ है कि राज्य में भ्रष्टाचार को रोकने की इच्छाशक्ति नहीं बची है।

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विश्लेषकों का मानना है कि यह मामला सरकार की प्रशासनिक साख की परीक्षा बन चुका है। यदि सरकार द्वारा दिए गए निर्देशों पर भी विभागीय अमला टालमटोल करे और जांच को लटकाए रखे, तो यह संदेश जाता है कि स्वास्थ्य विभाग में बैठे कुछ अधिकारी खुद को सरकार से भी ऊपर समझने लगे हैं।

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अब देखना यह है कि सरकार इस पूरे मामले में कितना कड़ा रुख अपनाती हैं। क्या वह जांच में तेजी लाकर दोषियों पर कार्रवाई कर पाते हैं या यह मामला भी पूर्व के कई मामलों की तरह फाइलों में दबकर रह जाएगा। यदि ऐसा हुआ, तो यह स्वास्थ्य सेवाओं और प्रशासनिक जवाबदेही दोनों के लिए खतरनाक संकेत होंगे।