तबादले बने मजाक… पुलिस महकमे में निरीक्षकों और उप निरीक्षकों की पकड़ मजबूत, अपने आदेशों का पालन कराने में अफसर बेबस…

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पुलिस विभाग में तबादलों को लेकर वर्षों से चली आ रही रस्साकशी आज भी जारी है। स्थिति यह हो गई है कि निरीक्षक और उप निरीक्षक इतने मजबूत हो गए हैं कि उनके आगे अधिकारी भी बेबस नजर आते हैं। रेंज स्तर से जब भी बंपर तबादलों की सूची जारी होती है, तो ऊंची पहुंच रखने वाले कुछ पुलिसकर्मी उन आदेशों को ठेंगा दिखा देते हैं। वहीं, जिनकी कोई सिफारिश या राजनीतिक पकड़ नहीं होती, वे मजबूरी में नवीन तैनाती स्थल पर जाने को विवश हो जाते हैं।

तबादलों में रसूख और सिफारिश का खेल

हर साल उच्च स्तर से बड़ी संख्या में निरीक्षकों और उप निरीक्षकों के तबादले किए जाते हैं। इन तबादलों का उद्देश्य फील्ड में काम कर रहे पुलिसकर्मियों के कार्यस्थल में बदलाव कर विभागीय कार्य प्रणाली को अधिक प्रभावी बनाना होता है। लेकिन यह उद्देश्य अक्सर प्रभावित हो जाता है, क्योंकि जिनके पास ऊंची पहुंच होती है, वे अपने तबादले रद्द करवाने में सफल हो जाते हैं। ऐसे में तबादला सूची जारी होने के बावजूद केवल वही पुलिसकर्मी नई तैनाती पर पहुंचते हैं, जो रसूख नहीं रखते।

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पुलिस महकमे में यह समस्या इतनी गहरी हो चुकी है कि अधिकारी चाहकर भी नियमों को सख्ती से लागू नहीं कर पाते। कई बार ऐसा देखा गया है कि तबादला आदेश जारी होने के बाद खबरनवीस और स्थानीय रसूखदार व्यक्ति इसमें दखल देने लगते हैं। वे कुछ पुलिसकर्मियों के पक्ष में माहौल बनाकर उनके तबादले रद्द कराने में सक्रिय भूमिका निभाते हैं। इसका सीधा असर विभागीय अनुशासन पर पड़ता है, क्योंकि तबादले को लेकर दो तरह की स्थिति बन जाती है—एक तरफ वे पुलिसकर्मी होते हैं, जो अपने प्रभाव के चलते थाने चौकियों में बने रहते हैं, तो दूसरी तरफ वे पुलिसकर्मी होते हैं, जिन्हें मजबूरी में नए स्थान पर जाना पड़ता है।

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अधिकारियों पर बढ़ता दबाव

पुलिस विभाग में तबादलों को लेकर सबसे बड़ी चुनौती यह है कि अधिकारी चाहकर भी निष्पक्षता से आदेशों को लागू नहीं कर पाते। ऊंची पहुंच और सिफारिश का ऐसा दबाव रहता है कि कई बार अधिकारी भी अपने फैसलों पर यू-टर्न लेने को मजबूर हो जाते हैं। जब रसूखदार पुलिसकर्मी तबादले से बच जाते हैं और बाकी को जाना पड़ता है, तो इससे महकमे में असंतोष पैदा होता है।

पुलिसकर्मियों का गिरता मनोबल

इस पूरी प्रक्रिया का सबसे नकारात्मक प्रभाव उन पुलिसकर्मियों पर पड़ता है, जो नियमों का पालन करते हुए अपने नए तैनाती स्थल पर पहुंच जाते हैं। वे देखते हैं कि उनके साथी, जिनकी ऊंची पहुंच है, अपने पुराने पदों पर ही बने हुए हैं, जबकि उन्हें मजबूरी में अपना स्थान छोड़ना पड़ा। इससे ईमानदारी से काम करने वाले पुलिसकर्मियों का मनोबल टूटता है और उनमें भी यह भावना पनपने लगती है कि अगर आगे बढ़ना है, तो नियमों से ज्यादा सिफारिश और रसूख का सहारा लेना पड़ेगा।

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क्या हो सकता है समाधान?

अगर पुलिस महकमे में इस समस्या को जड़ से खत्म करना है, तो तबादलों की प्रक्रिया को पूरी तरह पारदर्शी बनाना होगा।
अगर पुलिस विभाग में निष्पक्षता से तबादला नीति लागू की जाए, तो इससे महकमे में अनुशासन मजबूत होगा और पुलिसकर्मियों के बीच पारदर्शिता और भरोसा भी बढ़ेगा।