देहरादून, उत्तराखंड में वीआईपी कल्चर खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है। सरकारी दफ्तरों के बाद अब इसका असर अस्पतालों तक में साफ तौर पर देखा जा रहा है। राज्य के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल—दून मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल—के परिसर में खड़ी एक टैक्सी नंबर की गाड़ी इन दिनों लोगों के बीच चर्चा का केंद्र बनी हुई है।
दरअसल, इस गाड़ी पर बड़े-बड़े अक्षरों में “उत्तराखंड सरकार,” और वाहन संख्या लिखी हुई है। आम जनता यह देखकर हैरान थी कि आखिर टैक्सी नंबर की कार मुख्यमंत्री कार्यालय की कैसे हो सकती है? घायल मरीजों और उनके तीमारदारों के बीच सवाल उठने लगे कि क्या अब सरकारी पद और प्रभाव दिखाने के लिए सरकारी अस्पतालों को ही मंच बनाया जा रहा है?
पहले लोगों को लगा कि शायद यह वाहन किसी अधिकारी का हो या किसी वीआईपी की आगमन से जुड़ा हो, लेकिन जब अधिकारियों और स्टाफ से बातचीत कर जानकारी जुटाई गई तो चौंकाने वाला तथ्य सामने आया। पता चला कि यह वाहन किसी बड़े अधिकारी का नहीं, बल्कि स्वास्थ्य विभाग के एक कर्मी का है, जो इस गाड़ी का उपयोग कर अस्पताल परिसर समेत शहर में धड़ल्ले से घूमता है। बताया जा रहा है कि यह कर्मचारी अपने प्रभाव और दबदबे को दिखाने के लिए वाहन पर मुख्यमंत्री कार्यालय का बोर्ड लगाकर इधर-उधर घूमता है, जिससे वह आम लोगों और कर्मचारियों पर रौब झाड़ सके।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब स्वयं राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी बिना किसी दिखावे के बिल्कुल सादगी के साथ जनता के बीच रहते हैं, तो वहीं विभाग के कुछ कर्मचारी वीआईपी टैग लगाकर पूरे सिस्टम की छवि खराब करने में जुटे हैं। मुख्यमंत्री कार्यालय की ओर से जारी दिशानिर्देशों में भी साफ कहा गया है कि किसी भी प्रकार की फर्जी पहचान, गलत लिखावट या पद का गलत इस्तेमाल पूरी तरह प्रतिबंधित है।
अस्पताल परिसर में इस गाड़ी के खड़े होने से जहां आम लोगों में असंतोष है, वहीं स्वास्थ्य विभाग और प्रशासन पर भी सवाल उठ रहे हैं कि आखिर इस तरह की मनमानी पर रोक कौन लगाएगा? क्या विभाग इस पर कार्रवाई करेगा या मामला एक बार फिर केवल चर्चा बनकर रह जाएगा?
यह घटना प्रदेश में फैलते वीआईपी कल्चर की एक और मिसाल है, जो बताती है कि कुछ लोग अपनी सुविधा और रौब के लिए सरकारी प्रतिष्ठानों का उपयोग करने से परहेज़ नहीं करते। आम जनता अब मांग कर रही है कि ऐसे कर्मचारियों पर तुरंत कार्रवाई हो, ताकि सरकारी व्यवस्था पर लोगों का भरोसा बना रहे और अस्पताल जैसे संवेदनशील स्थानों पर अनावश्यक दबाव और भय का वातावरण न बने।


