नैनीताल स्थित उत्तराखंड उच्च न्यायालय में वन विभाग में विभागाध्यक्ष पद पर की गई नियुक्ति को लेकर सुनवाई हुई। याचिका के अनुसार भवानी प्रकाश गुप्ता ने कहा कि वे 1992 बैच के वरिष्ठ आईएफएस अधिकारी हैं, फिर भी उनसे कनिष्ठ अधिकारी कृतस्थ रंजन कुमार मिश्रा को वन विभाग का विभागाध्यक्ष बना दिया गया। यह नियुक्ति सेवा नियमों और वरिष्ठता की परंपरा के खिलाफ बताई गई। वरिष्ठ आईएफएस अधिकारी भवानी प्रकाश गुप्ता ने याचिका दाखिल कर आरोप लगाया था कि विभागाध्यक्ष का पद किसी जूनियर अधिकारी को दे दिया गया, जो सेवा नियमों और वरिष्ठता के सिद्धांत के खिलाफ है।
वहीं न्यायमूर्ति रवींद्र मैठानी एवं न्यायमूर्ती आलोक महरा की खंडपीठ में उक्त मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के अधिवक्ता की ओर से दलील दी गई कि केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण की सर्किट बेंच हर 3 हफ्ते में नैनीताल में बैठती है। ऐसे में मामले के निवारण में देरी हो सकती है, लिहाजा याचिकाकर्ता भवानी प्रकाश गुप्ता ने अपनी याचिका वापस लेने की प्रार्थना की, जिसे अदालत ने स्वीकार कर लिया। अदालत ने स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता को इस नियुक्ति को चुनौती देने के लिए प्रशासनिक न्यायाधिकरण के समक्ष मूल आवेदन दायर करने की पूरी स्वतंत्रता रहेगी। अब वे कैट में यह मुद्दा उठा सकेंगे कि विभागाध्यक्ष की नियुक्ति वरिष्ठता और नियमों के अनुरूप है या नहीं। हाईकोर्ट ने कहा कि इस तरह की सेवा‑संबंधी विवादों के समाधान के लिए कैट उपयुक्त मंच है, इसलिए आवेदक को वहां जाने की पूरी छूट दी जाती है।
भ्रष्टाचार मामले में निचली अदालत की कार्यवाही पर रोक
इसी मामले से जुड़े एक अन्य पहलू में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत निचली अदालत में विचाराधीन प्रकरण पर भी चर्चा हुई। दरअसल, हुकुम चंद्र पाल द्वारा दायर इस याचिका में आरोप लगाया गया है कि 24 मार्च 2025 को पारित आदेश के तहत भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धाराओं के अनुरूप चल रही जांच और उससे जुड़ी कार्यवाही को चुनौती दी गई थी। याचिका में दावा किया गया कि संबंधित जांच अधिकारी ने पहले ही अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी, इसके बावजूद उनके विरुद्ध आगे की कार्रवाई जारी रखी गई।
न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की अदालत ने सभी पक्षों को सुनने के बाद निचली अदालत में चल रही कार्यवाही पर फिलहाल रोक लगा दी और राज्य सरकार को नोटिस जारी कर विस्तृत जवाब तथा सम्पूर्ण अभिलेख पेश करने के निर्देश दिए हैं। अगली सुनवाई के लिए 12 फरवरी की तारीख तय की गई है, तब तक निचली अदालत में कोई आगे की कार्यवाही नहीं होगी। इन आदेशों के बाद अब एक ओर कैट में विभागाध्यक्ष की नियुक्ति पर कानूनी जंग और दूसरी ओर भ्रष्टाचार के मामले में न्यायिक समीक्षा, दोनों मोर्चों पर यह विवाद और अधिक महत्वपूर्ण हो गया है और पूरे वन विभाग में नियुक्ति प्रक्रिया और जवाबदेही पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।


