पहली महिला आबकारी आयुक्त ने दफ्तर में जमे अधिकारियों के छुड़ाए पसीने,अवैध शराब पर कार्रवाई के लिए फील्ड में उतारे गए आबकारी अधिकारी….

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देहरादून। अब तक जो अधिकारी दफ्तरों में बैठकर कुर्सियां गर्म किया करते थे, अब उन्हें फील्ड में उतरकर अवैध शराब के खिलाफ अभियान में सक्रिय भागीदारी निभानी पड़ रही है। यह बदलाव कोई सामान्य निर्णय नहीं, बल्कि राज्य की पहली महिला आबकारी आयुक्त अनुराधा पाल की सख्त कार्यशैली और नेतृत्व का प्रत्यक्ष परिणाम है। उन्होंने पदभार ग्रहण करते ही साफ कर दिया कि अब आबकारी विभाग में केवल बैठकों और कागजी कार्रवाई से काम नहीं चलेगा, बल्कि हर अधिकारी को ज़मीनी स्तर पर उतरकर नतीजे देने होंगे।

आयुक्त ने प्रदेश भर में चल रही अवैध शराब की तस्करी और कच्ची शराब की बिक्री को गंभीरता से लेते हुए एक व्यापक अभियान की शुरुआत की है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि यदि अब कहीं भी अवैध या जहरीली शराब के कारण कोई अप्रिय घटना घटित होती है, तो केवल छोटी मछलियों को नहीं पकड़ा जाएगा, बल्कि सिपाही से लेकर जिला आबकारी अधिकारी तक की सीधी जवाबदेही तय की जाएगी।

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इस चेतावनी के बाद से विभाग में खलबली मच गई है और वर्षों से कागजों तक सीमित रहने वाले कई अधिकारी अब फील्ड में सक्रिय नजर आने लगे हैं। यही नहीं, आयुक्त ने यह भी निर्देश दिया है कि फील्ड का काम केवल फील्ड में रहकर ही किया जाएगा, कागजों पर बैठकर आंकड़ों का खेल अब नहीं चलेगा।

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इस फैसले का पहला प्रभाव खुद उनके गृह जनपद हरिद्वार में देखने को मिला, जहां आबकारी विभाग के अधिकारियों की छापेमारी के नाम पर दफ्तर से बाहर निकलने की शुरुवात जरूर हो गई । आयुक्त की इस सख्त कार्यवाही से शराब माफियाओं में भी हड़कंप मच गया है।

आयुक्त अनुराधा पाल की कार्यशैली को लेकर विभागीय कर्मचारियों में मिली-जुली प्रतिक्रिया है। जहां एक ओर फील्ड में सक्रिय अधिकारी इस बदलाव को एक सकारात्मक पहल मान रहे हैं, वहीं वर्षों से कार्यालय की सुरक्षा में कार्यरत अधिकारी अब नए सिरे से काम की आदत डालने को मजबूर हो गए हैं।

अनुराधा पाल का मानना है कि अवैध शराब केवल कानून व्यवस्था का नहीं, बल्कि समाज की सेहत और राज्य के राजस्व का सवाल है। विभाग का मुख्य उद्देश्य न केवल जहरीली और अवैध शराब पर नियंत्रण पाना है, बल्कि राज्य के सरकारी खजाने को भी नई ऊंचाइयों तक पहुंचाना है।

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कुल मिलाकर, राज्य की पहली महिला आबकारी आयुक्त की यह पहल न केवल विभाग में अनुशासन और उत्तरदायित्व की भावना को मजबूत कर रही है, बल्कि आने वाले दिनों में इसके व्यापक सकारात्मक परिणाम देखने को मिल सकते हैं। अब देखना यह है कि यह सख्ती कितनी दूर तक असर दिखा पाती है और क्या यह अभियान अवैध शराब पर लगाम लगाने में निर्णायक साबित होगा या नहीं।