दून अस्पताल में सचिव डॉ. आर. राजेश कुमार ने पेश की मिसाल, “पहले बुजुर्ग महिला और मरीज का एक्सरे करें, मैं इंतजार कर लूंगा” — सचिव…

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देहरादून। आमतौर पर अस्पतालों में वीआईपी और अधिकारियों के आने पर आम मरीजों को पीछे कर दिया जाता है। प्राथमिकता और पहचान के चलते लोगों को लाइन से बाहर जांच कराने की सुविधा मिल जाती है। लेकिन दून अस्पताल में सोमवार को नजारा बिल्कुल अलग रहा। सचिव डॉ. आर. राजेश कुमार ने अपने व्यवहार से यह साबित किया कि इंसानियत और समानता किसी पद या अधिकार की मोहताज नहीं है।

दरअसल, सचिव अपने स्वजन का एक्सरे कराने दून अस्पताल पहुंचे थे। जैसे ही स्टाफ ने उन्हें पहचाना, तुरंत प्राथमिकता देने की कोशिश की। लेकिन डॉ. राजेश कुमार ने साफ शब्दों में कहा—
“सबसे पहले बुजुर्ग महिला और स्ट्रेचर पर लेटे मरीज की जांच हो, मैं बाद में करवा लूंगा।”

उनका यह निर्णय अस्पताल में मौजूद सभी मरीजों और स्टाफ के लिए एक प्रेरणा बन गया। जहां अधिकतर मामलों में बड़े पद पर बैठे लोग विशेषाधिकार का उपयोग कर दूसरों से आगे निकलने की कोशिश करते हैं, वहीं सचिव का यह आचरण प्रशासनिक संवेदनशीलता और नैतिक जिम्मेदारी का उदाहरण बन गया।

अस्पताल में मौजूद मरीजों और परिजनों ने भी इस पहल को सराहा। एक मरीज के परिजन ने कहा—
“आज पहली बार महसूस हुआ कि अस्पताल में हर मरीज को बराबरी का हक मिल सकता है।”

स्टाफ ने भी माना कि सचिव का यह व्यवहार स्वास्थ्य सेवाओं में सेवा भाव और सहानुभूति की असली मिसाल है।

डॉ. आर.राजेश कुमार के इस कदम से यह संदेश गया कि असली सम्मान केवल पद से नहीं, बल्कि व्यवहार और संवेदनशीलता से अर्जित होता है। अस्पताल में मौजूद हर व्यक्ति ने महसूस किया कि अगर हर जिम्मेदार अधिकारी इसी सोच के साथ काम करे, तो स्वास्थ्य सेवाओं पर लोगों का भरोसा और बढ़ सकता है।अंततः, दून अस्पताल की यह घटना समाज के लिए एक सकारात्मक संदेश बन गई कि इंसानियत और सहानुभूति ही असली नेतृत्व की पहचान है।