कहीं महंत देवेंद्र दास और लोगो के बीच संवाद की कमी तो नहीं बनी आंदोलन का कारण…?माता वाला बाग को लेकर ऐसे ही नहीं फूटा जनाक्रोश….!

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देहरादून में ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल माता वाला बाग को लेकर जनता का आक्रोश चरम पर है। रविवार को ‘माता वाला बाग बचाओ संघर्ष समिति’ के बैनर तले सैकड़ों की संख्या में लोगों ने सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारियों ने हाथों में काले झंडे लेकर महंत देवेंद्र दास और दरबार प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी की। यह रैली सहारनपुर चौक से माता वाला बाग तक निकाली गई, जिसका नेतृत्व अधिवक्ता अमित तोमर ने किया। अमित तोमर ने कहा कि माता वाला बाग की ऐतिहासिक और धार्मिक पहचान से छेड़छाड़ बर्दाश्त नहीं की जाएगी। उन्होंने बताया कि लगभग 300 साल पूर्व श्री गुरु राम राय जी की चौथी पत्नी माता पंजाब कौर ने यह बाग आम जनता के लिए बनवाया था। यह स्थान देहरादून की धरोहर है, जहां पर लोगों का आना-जाना और विश्राम वर्षों से होता आया है। लेकिन हाल ही में इसे आम जन के लिए पूरी तरह से बंद कर दिया गया है।तोमर ने आरोप लगाया कि बाग परिसर में स्थित प्राचीन हनुमान मंदिर, जो श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र था, उसे झंडे जी मेले के दौरान कुछ अराजक तत्वों द्वारा जेसीबी मशीन से ध्वस्त कर दिया गया। यह सब उस समय किया गया जब मेला स्थल पर भारी भीड़ होती है और ऐसी गतिविधियों की आड़ में अवैध कार्य किए जाते हैं। प्रदर्शनकारियों की मांग है कि माता वाला बाग को तत्काल आम जनता के लिए खोला जाए, तोड़े गए हनुमान मंदिर का पुनर्निर्माण किया जाए, और परिसर में बच्चों के लिए एक सार्वजनिक खेल मैदान की भी व्यवस्था की जाए। उन्होंने यह भी कहा कि यदि समय रहते महंत देवेंद्र दास तक यह जनभावना नहीं पहुंच पाई, तो इसके लिए दरबार प्रशासन की सूचना प्रणाली जिम्मेदार है, जिसे जनता की नब्ज पर नजर रखने के लिए मोटा वेतन मिलता है। महंत देवेंद्र दास को एक शांत, गंभीर और सुलझे हुए संत के रूप में जाना जाता है, जो सदैव जनभावनाओं का सम्मान करते रहे हैं। ऐसे में देहरादूनवासियों द्वारा दरबार के खिलाफ इस प्रकार का सार्वजनिक मोर्चा खोलना चिंताजनक है। यह संकेत है कि कहीं न कहीं संवाद की गंभीर कमी रही है।प्रदर्शनकारियों ने राज्य सरकार से मांग की है कि मुख्यमंत्री पूरे मामले का संज्ञान लें और निष्पक्ष जांच कर कार्रवाई सुनिश्चित करें। साथ ही उन्होंने चेताया कि यदि मांगे नहीं मानी गईं तो आंदोलन को और व्यापक स्तर पर ले जाया जाएगा। जल्द ही प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को ज्ञापन भी सौंपा जाएगा। यह आंदोलन सिर्फ धार्मिक आस्था का सवाल नहीं, बल्कि देहरादून की सामाजिक विरासत और जन अधिकारों के संरक्षण की पुकार बन चुका है।