रेडियोलॉजिस्ट का पंजीकरण तीन माह के लिए सस्पेंड

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गर्भावस्था के दौरान भ्रूण में कमी न देख पाने को एम्स ऋषिकेश के विशेषज्ञों ने रेडियोलॉजिस्ट की गलती माना है। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि 2डी में किसी तरह का संदेह होने पर रेडियोलॉजिस्ट को 3डी अल्‍ट्रासाउंड की सलाह देनी चाहिए थी। न की इसे सामान्य रिपोर्ट की । उत्तराखंड मेडिकल काउंसिल की अनुशासनात्मक समिति ने इस आधार पर आहूजा पैथोलॉजी के डॉ. (ले कर्नल) मलय जोशी
को चिकित्सीय लापरवाही का दोषी माना है। चिकित्सक का पंजीकरण तीन माह के लिए सस्पेंड कर दिया है। साथ ही उन्हें हिदायत देते हुए कहा कि वह किसी सक्षम केंद्र से एक माह के लिए पुन: रेडियोलॉजी का प्रशिक्षण प्राप्त करें। साथ ही आहूजा पैथोलॉजी एंड इमेजिंग सेंटर को चेतावनी दी गई है कि वह भविष्य में अपने संस्थान में कुशल रेडियोलॉजिस्ट को ही नियुक्त करें। 28 जनवरी 2019 को बबीता पाठक ने मुख्य चिकित्सा अधिकारी के यहां मामले की शिकायत की थी। जिसमें कहा गया था कि वह 19 सप्ताह की गर्भवती थी तब आहूजा पैथोलॉजी पर अल्ट्रासाउंड कराया था। इस जांच के बाद इमेजिंग सेंटर ने रिपोर्ट दी थी कि बच्चा पूर्णतया स्वस्थ है। इसके बाद 29 अक्तूबर 2018 को उन्होंने पुत्र को जन्म दिया तो उसके होंठ और तालु कटे हुए थे। यही नहीं उसका हृदय भी निर्धारित स्थान से अलग (दाईं तरफ) था और अस्वस्थ था। ऐसे में जब उन्होंने इसकी शिकायत इमेजिंग सेंटर में की तो उन्होंने भी इसकी गलती मानी, लेकिन बाद में सेंटर संचालक अपनी बात से पलट गए। मुख्य चिकित्साधिकारी कार्यालय ने भी दून मेडिकल कॉलेज अस्पताल के विशेषज्ञों से मामले की जांच कराई थी। जिन्होंने माना था कि रेडियोलॉजिस्ट के स्तर पर चूक हुई है। इधर, उत्तराखंड मेडिकल काउंसिल ने एम्स ऋषिकेश के विशेषज्ञों से इस मामले में राय ली। उन्होंने भी कहा है कि भ्रूण में उक्त कमी न देख पाना रेडियोलॉजिस्ट की चूक है। यदि रेडियोलॉजिस्ट चाहता तो महिला को एडवांस जांच के लिए कह सकता था। महिला के पति प्रमोद पाठक का कहना है कि इस मामले में आहूजा पैथोलॉजी एंड इमेजिंग सेंटर पर भी कार्रवाई होनी चाहिए। क्योंकि लोग उसी के नाम पर टेस्ट कराने जाते हैं न की किसी डॉक्टर या स्टाफ के नाम पर।