पौड़ी, उत्तराखंड का स्वास्थ्य विभाग लंबे समय से संसाधनों की कमी, स्टाफ संकट और व्यवस्थागत खामियों की दुहाई देता आ रहा है, लेकिन हालिया घटना ने इस “बदहाली” के तर्क को ही कटघरे में खड़ा कर दिया है। सोशल मीडिया पर वायरल पौड़ी का एक वीडियो न सिर्फ प्रशासन की संवेदनहीनता को उजागर करता है, बल्कि यह भी बताता है कि जमीनी हकीकत सरकारी दावों से कितनी दूर है। बताया जा रहा है कि यह वीडियो पौड़ी अस्पताल का है, जहां घायल अवस्था में लाए गए अर्जुन भंडारी नामक व्यक्ति को इलाज के लिए बेड पर लिटाने के बजाय जमीन पर ही रखा गया। हैरानी की बात यह है कि ठीक बगल में अबअस्पताल का बेड खाली पड़ा दिखाई दे रहा है। यह दृश्य केवल एक व्यक्ति के साथ की गई लापरवाही नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की मानसिकता को दर्शाता है, जहां मरीज नहीं, व्यवस्था की सुविधा प्राथमिक बन गई है। स्वास्थ्य सेवाओं को मानवता और संवेदना से जोड़कर देखा जाता है। अस्पताल वह स्थान होता है जहां पीड़ित व्यक्ति यह उम्मीद लेकर पहुंचता है कि उसे राहत मिलेगी, दर्द कम होगा और सम्मानजनक व्यवहार मिलेगा। लेकिन पौड़ी अस्पताल का यह वीडियो इन सभी उम्मीदों को चकनाचूर करता नजर आता है। सवाल यह नहीं है कि बेड क्यों नहीं दिया गया, सवाल यह है कि जब बेड मौजूद था तो मरीज को जमीन पर क्यों छोड़ा गया? क्या यह लापरवाही थी, उदासीनता थी या फिर सिस्टम की जड़ जमा चुकी असंवेदनशीलता?
इस घटना ने इसलिए भी ज्यादा तूल पकड़ लिया है क्योंकि पौड़ी वही जिला है जहां से राज्य के स्वास्थ्य मंत्री डॉ. धन सिंह रावत आते हैं। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि यदि मंत्री के गृह जिले में यह हाल है, तो दूर-दराज के पहाड़ी इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति कैसी होगी। सरकार आए दिन स्वास्थ्य ढांचे को मजबूत करने, अस्पतालों को आधुनिक बनाने और मरीजों को बेहतर सुविधाएं देने के दावे करती है, लेकिन वायरल वीडियो इन दावों की पोल खोलता दिखाई दे रहा है।
स्वास्थ्य विभाग अक्सर डॉक्टरों की कमी, बजट अभाव और संसाधनों की दुहाई देता है, लेकिन इस मामले में न तो संसाधन की कमी दिखी और न ही सुविधा का अभाव। यहां समस्या मानसिकता की है। मरीज को एक इंसान के बजाय एक “केस” समझने की प्रवृत्ति ही ऐसी घटनाओं को जन्म देती है। यदि समय रहते इस सोच में बदलाव नहीं किया गया, तो सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं पर आम जनता का भरोसा और कमजोर होगा।
अब जरूरत केवल जांच के आदेश देने या किसी निचले कर्मचारी पर कार्रवाई कर मामला रफा-दफा करने की नहीं है। जरूरत है कि पूरे सिस्टम की जवाबदेही तय हो, संवेदनशीलता को अनिवार्य बनाया जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि भविष्य में कोई भी मरीज इस तरह अपमानित न हो। पौड़ी अस्पताल की यह घटना एक चेतावनी है—अगर अब भी सबक नहीं लिया गया, तो यह बदहाली केवल वीडियो तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि स्वास्थ्य व्यवस्था की पहचान बन जाएगी।


