देहरादून, यूं तो खाद्य सुरक्षा को लेकर तमाम मानक बनाए गए हैं लेकिन प्रदेश के कुछ जनपदों में केंद्रीय लाइसेंस जारी होने के बाद राज्य का खाद्य सुरक्षा महकमा बिल्कुल असहाय हो रखा है जो उन संस्थानों में सैंपलिंग की कार्रवाई तक नहीं कर पाता, ऐसे में यदि लोगों की जान के साथ खिलवाड़ हो तो फिर जिम्मेदारी किसकी होगी राज्य या केंद्र की ? दरअसल राज्य में स्थापित तमाम बड़े संस्थानों के द्वारा केंद्रीय फूड लाइसेंस लिया गया है जो केंद्रीय खाद्य सुरक्षा विभाग के दायरे में आता है लेकिन राज्य में होने के बावजूद राज्य का खाद्य सुरक्षा विभाग वहां की साफ सफाई और मानकों को देख भी नहीं सकता, जिसके चलते बड़े होटल संचालक बेलगाम हो रहे है ।। दरअसल तमाम बड़े होटलों में डेरी प्रोडक्ट स्थानीय डेरी से खरीदे जाते हैं जिनमें तमाम सैंपल फेल भी होते हैं, ऐसे में यदि उन संस्थाओं के प्रोडक्ट के सैंपल फेल हो रहे हैं तो फिर तमाम बड़े होटलों में परोसा जाने वाला खाना कैसे सुरक्षित हो सकता है।। मामले को लेकर पूर्व में भी राज्य की तरफ से आपत्ति केंद्र के सामने दर्ज की गई थी पर मजाल है कि इस और किसी का भी ध्यान गया हो।। अब एक बार फिर सवाल खड़े हो रहे हैं कि जो संस्थान उत्तराखंड में संचालित हो रहे हैं उन पर भला राज्य का अधिकार कैसे ना हो ? यदि कोई फूड प्वाइजनिंग होती है किसी व्यक्ति के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ होता है तो फिर राज्य का खाद्य सुरक्षा विभाग तो हाथ पैर हाथ की धरा रह जाएगा, क्योंकि कार्रवाई का अधिकारी तो राज्य के पास है ही नही।।
खाद्य सुरक्षा विभाग के आंकड़ों के अनुसार पिछले 6 माह में देहरादून, टिहरी, हरिद्वार में दूध व दूध से बने प्रोडक्ट के 9 सैंपल फेल पाए गए है