अस्पतालों को छोड़ डीजी ऑफिस की शोभा बड़ा रहे एनेस्थेटिक डॉक्टर, सरकार रो रही विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी का रोना….

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देहरादून, उत्तराखंड में विशेषज्ञ डॉक्टरों की भारी कमी है इस बात को सरकार से लेकर अधिकारी भी समझ रहे हैं लेकिन विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी पूरी करने में नाकामी ही हाथ लग रही है आलम यह है कि जो विशेषज्ञ डॉक्टर राज्य में मौजूद भी है वह स्वास्थ्य महानिदेशालय और सीएमओ कार्यालयों की कुर्सियों पर जमे हुए हैं राज्य में 178 एनेस्थेटिक डॉक्टरों के पद स्वीकृत है जिसके सापेक्ष महज 79 डॉक्टर ही राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं में अपना योगदान दे रहे हैं जबकि 99 एनेस्थेटिक डॉक्टर की कमी राज्य में बनी हुई है अकेले स्वास्थ्य महानिदेशालय में ही तीन एनेस्थेटिक चिकित्सक अपनी सेवाएं कागजों का पेट भरने में दे रहे हैं जबकि तमाम अस्पतालों में वैकल्पिक व्यवस्था पर एनेस्थेटिक डॉक्टर ऑपरेशन के दौरान मौजूद होते हैं स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी यूं तो खुद को गंभीर बताते हैं लेकिन जब आमजन की सुविधाओं की बात हो तो फिर आम और खास का फर्क साफ देखा जा सकता है अधिकारियों की कार्यशैली हमेशा से ही चर्चाओं का विषय बनी रहती हैं जहां डॉक्टरों की तैनाती अस्पतालों में मरीजों को देखने के लिए की जाती हैं तो वही कुछ एल डॉक्टर अपने मूल कार्यों से दूर बाबू गिरी करने में ज्यादा दिलचस्पी दिखाने लगते हैं जिसका खामियाजा राज्य की उस आवाम को भुगतना पड़ता है जो सरकारी अस्पतालों में उपचार कराने को मजबूर है।। एक तरफ सरकार यू कोट वी पे योजना चलाकर डॉक्टरों को लाने का दावा कर रही है तो वहीं राज्य में मौजूद विशेषज्ञ चिकित्सक बाबू गिरी में लगे हैं यदि सरकार मौजूद डॉक्टरों से ही अस्पतालों में सेवाएं लेती तो शायद सरकार को भारी-भरकम वेतन देकर डॉक्टर नहीं बुलाने पड़ते।। वहीं कई अस्पतालों में एनेस्थेटिक डॉक्टर प्रशासनिक कार्यों में भी जुटे हुए हैं जो प्रशासनिक कार्यों के साथ-साथ मरीजों को भी एनेस्थीसिया देने का काम करते हैं यदि प्रशासनिक कार्य आ जाए तो फिर मरीज ऑपरेशन कराने के लिए इंतजार करने को मजबूर होते हैं।। हालांकि स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ विनीता शाह ने बताया कि आईसीयू के लिए भी पद स्वीकृत हैं जो जल्द ही भरे जायेंगे, लेकिन अस्पतालों में सभी जगहों पर एनेस्थेटिक की व्यवस्था की गई है।।