पीने वालों को सुरा से हसीन कुछ नहीं लगती…उनके हलक को मय के दो घूंट तर क्या करती है कि वे दुनिया जहां के गम भुला कर बेतकलीफ हो जाते हैं.. कुछ इसी अंदाज मे सूबे का आबकारी महकमा भी दिखाई दे रहा है…राज्य में आबकारी विभाग की खाते-खतौनी की पड़ताल की जाए तो एक नहीं दर्जनों अनियमितता दिखाई देंगी..जिनमें वित्तीय अनियमित्ता से लेकर लापरवाहियों की एक लंबी फेहरिश्त नजर आएगी.. ताज्जुब की बात है कि हर एक में महकमा जांच का चाबुक चलाने के लिए आदेश भी देता है..लेकिन उसके बाद होता क्या है किसी को खबर नहीं होती.. जांच की आंच से कितनो के फफोले पडे इसका पता ही नहीं चलता…महकमे में जांच चंद्रकांता संतति के उपन्यास में जिक्र हुए तिलिस्म और अय्यारों के किस्से से बन गए है..जहां जांच के नाम पर सिर्फ कागज पर उभरे आदेश दिखते हैं…महकमे के गलियारे में दाखिल हो जाओ तो अहसास होता है कि यहां अंधेरनगरी चौपट राजा वाला हिसाब-किताब है.. पिछले पांच साल में दर्जनों जांच के आदेश हुए हैं लेकिन एक भी जांच पूरी नहीं हुई ..महकमें में जांच बीरबल की खिचड़ी से ज्यादा कुछ नहीं..महकमें के भीतर कई जिलों से वित्तीय अनियमित्ताओं के मामले है .. जांच आदेशों की फाइले बनी हैं लेकिन जांच के नाम पर निल बटा सन्नाटा..लॉकडाउन के दौरान ही कई गडबड़ियां और महकमे की साख पर दाग लगाने वाले मामले आए उन पर जांच के आदेश भी हुए लेकिन अधिकारियों ने क्या जांच की धरातल पर नहीं दिखी..कई बार तो महकमे के दोहरे मापदंड भी दिखे..कोटद्वार में आबकारी निरीक्षक पर निलंबन की गाज गिर जाती है..लेकिन रुड़की में जांच की रिपोर्ट के लिए महकमे के आलाधिकारियों की आंखे इतंजार करते करते थक जाती हैं.. वही पौड़ी में वित्तीय अनियमितता की बात हो या फिर देहरादून और नैनीताल की , हालात किसी से छिपे नही है।जिन मामलों पर जांच पूरी हुई उन पर कार्रवाई क्या हुई इसका भी आज तक पता नही चला। ऐसे में सवाल उठता है कि जब आबकारी महकमे का गड़बडियों के साथ चोली-दामन का रिश्ता हो तो फिर जांच के आदेश दिए ही क्यों जाते हैं….