सरकार ने समय रहते नहीं किया हस्तक्षेप तो कारोबारियों का पलायन तय
देहरादून: उत्तराखंड में शराब कारोबारियों पर अब सिस्टम की कड़ी नजर पड़ चुकी है। पहले जहां शराब से संबंधित कारोबार को सरकार की नीतियों का सीधा लाभ मिलता रहा, वहीं अब ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ विभागों की “कू दृष्टि” इस कारोबार पर जम गई है। चर्चा है कि विभागीय गुटबाजी और अंदरखाने चल रही खींचतान अब शराब कारोबार पर गहराते संकट का संकेत दे रही है।
सूत्रों की मानें तो कुछ विभागों के अधिकारी अब इस कारोबार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं और बार-बार निरीक्षण, नोटिस और कार्रवाई की आड़ में कारोबारियों पर शिकंजा कसते जा रहे हैं। इस स्थिति से घबराए शराब कारोबारी अब उत्तराखंड से तौबा करने का मन बना रहे हैं। हालांकि कारोबारी खुलकर विरोध नहीं कर पा रहे, लेकिन अंदर ही अंदर वे दूसरे राज्यों में कारोबार स्थानांतरित करने की रणनीति बनाने लगे हैं।
गौरतलब है कि उत्तराखंड सरकार ने शराब कारोबार को स्थानीय लोगों के लिए लाभकारी बनाने की नीति अपनाई थी। राज्य की मौजूदा शराब नीति के तहत FL2 से लेकर खुदरा दुकानों तक स्थानीय निवासियों को प्राथमिकता दी गई। यहां तक कि शराब की दुकानों पर काम करने वाले सेल्समैन भी स्थानीय ही होने चाहिए – यह व्यवस्था स्पष्ट रूप से नीति में शामिल है। इससे न केवल स्थानीय रोजगार को बढ़ावा मिला, बल्कि राजस्व में भी इजाफा हुआ।
वहीं, आबकारी विभाग की बात करें तो यह विभाग मुख्यमंत्री के अधीन है और लगातार राजस्व के मोर्चे पर अच्छा प्रदर्शन कर रहा है। विभाग की कार्रवाई के चलते अवैध शराब की तस्करी और बिक्री पर भी कड़ा प्रहार हुआ है। इन प्रयासों से सरकार को करोड़ों का राजस्व प्राप्त हो रहा है, जो राज्य के विकास कार्यों में सहायक है।
लेकिन इस बीच अन्य विभागों के कुछ अधिकारियों का रवैया शराब कारोबारियों के लिए मुश्किलें खड़ी कर रहा है। बार-बार की जांच-पड़ताल, कागजी कार्रवाई में उलझाना, और किसी भी छोटी गलती पर जुर्माने जैसे कदम कारोबारियों को हतोत्साहित कर रहे हैं।वहीं दूसरी ओर ईमानदारी से कारोबार करने वाले व्यापारियों को बेवजह परेशान किया जा रहा है।
सबसे गंभीर बात यह है कि यदि यह स्थिति यूं ही बनी रही, तो इसका सीधा असर सरकार के राजस्व पर पड़ सकता है। शराब एक बड़ा रेवेन्यू जेनरेटर है और यदि कारोबारी उत्तराखंड से पलायन करते हैं या निवेश से कतराते हैं, तो इससे राज्य की वित्तीय स्थिति पर विपरीत असर पड़ेगा।
इस पूरे घटनाक्रम ने प्रदेश में एक नई बहस को जन्म दे दिया है। क्या वाकई कुछ विभागीय अधिकारी शराब कारोबार को बंद करने की मंशा से कार्य कर रहे हैं? क्या सरकार को इस मामले में हस्तक्षेप कर संतुलन साधने की आवश्यकता है? आने वाले समय में यह देखना रोचक होगा कि सरकार इस मुद्दे पर किस तरह का रुख अपनाती है – क्योंकि यदि समय रहते हालात नहीं सुधरे, तो न केवल कारोबारियों का भरोसा डगमगाएगा, बल्कि सरकारी खजाना भी प्रभावित हो सकता है।
