उत्तराखंड में कई नवजात बच्चों के नसीब में नही रही माँ की गोद, कभी कूड़ेदान तो कभी जंगल मे फेंके गए नवजात बच्चे

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नवजात बच्चों के सुनसान जगहों पर मिलने की घटनाएं अक्सर सुनी जाती रही है.. रूह कंपा देने वाली ऐसी घटनाओं में कई बच्चे अपनी जान गवा देते हैं तो कुछ ऐसे भी होते हैं जिन्हें किसी फरिश्ते का सहारा मिल जाता है और वह अपनी नई जिंदगी की तरफ बढ़ जाते हैं। उत्तराखंड में भी अक्सर कूड़ेदान या झाड़ियों में नवजात शिशुओं के मिलने की खबरें मिलती रहती है। स्थानीय लोगों की मदद से कई बच्चों को बचाया गया है.. अच्छी बात यह है कि जिन बच्चों को बचाने में कामयाबी मिली उनमें से कई बच्चे आज एक अच्छी जिंदगी भी जी रहे हैं। दरअसल सरकार की तरफ से ऐसे बच्चों के लिए गोद लेने की व्यवस्थाएं बनाई गई है ताकि इन बच्चों को फिर एक परिवार मिल सके और मां-बाप का प्यार भी।

प्रदेश में नवजात शिशु के इस तरह से मिलने को बेहद गंभीर मानते हुए सरकार ने बकायदा इसके लिए योजना भी निकाली है। सरकार द्वारा शुरू की गई पालना योजना के तहत लोगों से भी निवेदन किया जाता है कि यदि वह मजबूरी से बच्चों को नहीं अपना सकते तो वे शिशु सदन या अलग-अलग जॉब पर लगाए गए पालना में बच्चे को सकुशल रखें ताकि बच्चे को कोई हानि ना हो। इसके अलावा ऐसे बच्चों के लिए सरकार ने सरकारी नौकरियों में भी 5ः आरक्षण की बात कही है वहीं मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन के लिए भी 2ः के आरक्षण की व्यवस्था की गई है। यही नहीं तमाम दूसरी अस्थाई नौकरियों में भी मैसेज अनाथ बच्चों को 18 साल पूरा करने पर प्राथमिकता रोजगार के लिए दी जाती है। बाल संरक्षण आयोग की अध्यक्ष उषा नेगी कहती है कि इसमें सबसे बड़ा योगदान समाज का है यानी समाज को इसके लिए जागरूक हो रहा होगा साथ ही नर्सिंग होम और तमाम अस्पतालों के डॉक्टर को भी इसके लिए सजग रहना होगा। उत्तराखंड में हर साल तकरीबन आठ से 10 बच्चे लावारिस हालत में मिलते है। लेकिन अच्छी बात यह है कि ऐसे अनाथ बच्चों को गोद लेने वालों की संख्या बेहद ज्यादा है। यह हालत तब है जब को देने के लिए सरकार ने कठिन प्रक्रिया बनाई है ताकि बच्चों के साथ कोई गलत निर्णय ना हो और एक अच्छे संबंध परिवार को ही बच्चे गोद दिए जाए। इसके लिए गोद लेने वाले माता पिता को अपनी वार्षिक इनकम बताने के साथ ही बेहतर पालन पोषण देने में सक्षम होने का प्रमाण देना पड़ता है। साथ ही समय-समय पर सरकार की गठित टीम ऐसे माता-पिता के घर में जाकर बच्चे की स्थिति को भी देखती है। लावारिस हालत में बच्चों को फेंकने वाले माता-पिता पर नहीं हो पाती कार्यवाही प्रदेश में लगातार ऐसे नवजात शिशु के मिलने की सूचना मिलती रहती है जो इस निर्जन स्थान पर फेंके जाते हैं लेकिन चिंता की बात यह है कि ऐसे माता-पिता पर अब तक कोई कार्यवाही नहीं हुई है ऐसा इसलिए क्योंकि ऐसे माता-पिता का सुराग लगाना काफी मुश्किल हो जाता है और अपराध करने वाले ऐसे लोगों की जानकारी ना होने कारण से कानून के शिकंजे से बच जाते हैं।

2017 से 2020 के  पुलिस के आंकड़े

मृतक बच्चे बरामद। पंजीकृत

उत्तरकाशी-

2018 1
टिहरी।

2020 1
चमोली

2017 1
2018 2 1
2020 1

रुद्रप्रयाग। कोई घटना नही

पौड़ी।

2018 2 1 2
2019 1
2020 1

देहरादून

2017 3 0 1
2018 9 2 3
2019 4 6 4
2020 1 3 2

हरिद्वार।

2018 1
2019 1

 प्राप्त जीवित।      मृतक     अभियोग

2017 0 4 1
2018 3 14 6
2019 4 8 4
2020 5 3 3

राज्य मे लगातार नवजात बच्चो को कूडेदान मे फेंके जाने की घटनाएं हो रही है जिसको लेकर जिम्मेदार विभाग भले ही लोगाो को जागरूक करने व कार्रवाई करने के लाख दावे कर लें लेकिन जमीनी हकिकत सिस्टम के कौरे दावों से कौसों दूर है।