उत्तराखंड में कैसा होगा मिशन 2027 का समीकरण, क्या दिल्ली रैली से कांग्रेस जीत पाएगी चुनावी रण ?

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उत्तराखंड में आगामी 2027 विधानसभा चुनाव को लेकर क्या चुनावी समीकरण बनेगा, इसको लेकर अटकले लगने शुरु हो चुके हैं। चूंकि उत्तराखंड में कांग्रेस बीते काफी समय से सत्ता से बाहर है, क्योंकि पिछले विधानसभा चुनावों में संगठनात्मक कमजोरियां और आपसी खींचतान पार्टी पर भारी पड़ी, तो वहीं अब मिशन 2027 को लेकर कांग्रेस अपनी कमर मजबूत करती नजर आ रही है। इसी क्रम में दिल्ली के रामलीला मैदान में नेशनल कांग्रेस ने केंद्र सरकार के खिलाफ बड़ा राजनीतिक संदेश देते हुए महारैली की, जिसके बाद से अब उत्तराखंड में सियासी चर्चाएं तेज हो गई हैं। मौजूदा समय में उत्तराखंड कांग्रेस की कमान गणेश गोदियाल के हाथों मे हैं, जिन्हें न सिर्फ एक बुनियादी राजनेता के रुप में देखा जाता है बल्कि वह 2027 विधानसभा चुनाव को लेकर संगठन को बूथ स्तर तक मजबूत करने की बात करते हैं। मगर कांग्रेस की दिल्ली महारैली के बाद सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या इसका असर उत्तराखंड कांग्रेस के मिशन 2027 में देखने को मिलेगा? क्या कांग्रेस द्वारा उठाए गए राष्ट्रीय मुद्दे उत्तराखंड जैसे पर्वतीय राज्य की स्थानिय राजनीति में अपनी जगह बना पाएंगे ?

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मिशन 2027 नहीं आसान, बस इतना समझ लिजिए


उत्तराखंड में राजनीति हमेशा से ही स्थानीय मुद्दों के इर्द-गिर्द ही घूमती रही है। पलायन, रोजगार, सड़क, स्वास्थ्य और शिक्षा—यही वो मुद्दे हैं जिन पर यहां की जनता अपना फैसला करार करती है, लेकिन दिल्ली आह्वान के बाद उत्तराखंड में कांग्रेस व्यापक दृष्टिकोण रखती नजर आ रही है। दिल्ली में हुई महारैली को लेकर कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता शीशपाल सिंह बिष्ट का कहना है कि दिल्ली में आयोजित ऐतिहासिक महारैली में जिस तरह से कांग्रेस का हर कार्यकर्ता और आम जनमानस जुड़ा, उससे पार्टी के कार्यकर्ताओं का आत्मविश्वास कई गुना बढ़ा है। आज संविधान खतरे में है और हमारी लड़ाई लोकतंत्र को बचाने की है। इस रैली का सकारात्मक संदेश पूरे देश के कांग्रेस कार्यकर्ताओं और आम लोगों तक पहुंच गया है, और इसका असर आने वाले विधानसभा समेत तमाम चुनावों में जरूर देखने को मिलेगा।

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आशा की नहीं, हताशा की रैली कहिए- नवीन ठाकुर


वहीं सत्ताधारी भाजपा नेशनल कांग्रेस की दिल्ली महारैली को सिरे से नकार रही है। भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता नवीन ठाकुर का कहना है कि कांग्रेस की महारैली का असर न देश में पड़ेगा और न ही उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में, क्योंकि कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व हो या जमीनी कार्यकर्ता, सभी हताश और निराश नजर आ रहे हैं। स्पष्ट रुप से यह कांग्रेस का मनोबल बढ़ाने वाली रैली नहीं बल्कि यह कांग्रेस की हताशा की रैली थी और उत्तराखंड में भाजपा 2027 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर हैट्रिक लगाने जा रही है।

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बहरहाल, दिल्ली में आयोजित महारैली से कांग्रेस ने भले ही हुंकार भरी हो, लेकिन उत्तराखंड के ऊंचे-नीचे राजनीतिक पटल पर इसे उतारना प्रदेश कांग्रेस के लिए बड़ा चुनौतिपूर्ण होने वाला है। अब देखना यह होगा कि क्या प्रदेश नेतृत्व राष्ट्रीय मुद्दों को स्थानीय सवालों से जोड़कर जनता का भरोसा जीत पाता है, या फिर दिल्ली की गूंज पहाड़ तक पहुंचने से पहले ही अपना दम तोड़ती है।