हरिद्वार/नैनीताल। उत्तराखंड में कांवड़ यात्रा के दौरान पुलिस अधिकारियों की धार्मिक गतिविधियों में भागीदारी को लेकर बहस तेज हो गई है। जहां एक ओर नैनीताल हाईकोर्ट कांवड़ यात्रा के दौरान हो रही अराजकता, हुड़दंग, मारपीट और सड़कों पर कब्जे को लेकर पुलिस और प्रशासन से जवाब तलब कर रही है, वहीं दूसरी ओर हरिद्वार में पुलिस अधिकारियों द्वारा कांवड़ियों पर फूल बरसाने का वीडियो सामने आने के बाद विवाद गहराता जा रहा है।
इस विरोधाभास पर सवाल यह उठ रहा है कि क्या ड्यूटी पर मौजूद कोई पुलिस अधिकारी—जो ऑल इंडिया सर्विसेज़ रूल्स के तहत कार्य करता है—धार्मिक आयोजनों में सार्वजनिक रूप से भाग ले सकता है? ऑल इंडिया सर्विस रूल्स के तहत, किसी भी सरकारी अधिकारी से अपेक्षा की जाती है कि वह धर्मनिरपेक्ष मूल्यों का पालन करे और किसी विशेष धार्मिक गतिविधि में सक्रिय भागीदारी से बचे। नियम स्पष्ट करते हैं कि सेवा में रहते हुए अधिकारी को ऐसा कोई कार्य नहीं करना चाहिए जिससे उसकी तटस्थता या निष्पक्षता पर प्रश्नचिन्ह लगे।
कांवड़ यात्रा एक धार्मिक उत्सव है, जिसमें लाखों श्रद्धालु शामिल होते हैं, लेकिन हाल के वर्षों में इसमें बढ़ते हुड़दंग और कानून व्यवस्था की चुनौतियों ने इसे प्रशासनिक सिरदर्द बना दिया है। हाईकोर्ट द्वारा मांगी गई रिपोर्ट इस ओर संकेत करती है कि शासन-प्रशासन की भूमिका केवल सुरक्षा व्यवस्था तक सीमित रहनी चाहिए, न कि आस्था प्रदर्शन तक।
आईपीएस अधिकारियों द्वारा फूल बरसाना जहां कुछ लोगों को श्रद्धा का प्रतीक लगा, वहीं कई पूर्व नौकरशाहों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और कानूनविदों ने इसे “धर्मनिरपेक्ष राज्य की अवधारणा के खिलाफ” बताया है। उनका कहना है कि यदि पुलिस ही धार्मिक गतिविधियों में खुले तौर पर भाग लेने लगेगी, तो वह अल्पसंख्यकों और अन्य धार्मिक समुदायों में असुरक्षा की भावना पैदा कर सकती है।
समाज में कानून व्यवस्था बनाए रखने वाली एजेंसियों को आस्था नहीं, संविधान के निर्देशों के अनुरूप कार्य करना चाहिए—ऐसा मत अब व्यापक रूप से उभर रहा है। ऐसे में अब निगाहें नैनीताल हाईकोर्ट की अगली सुनवाई पर टिकी हैं, जहां से इस बहस को एक संवैधानिक दिशा मिल सकती है।
