देहरादून, राजधानी होने के नाते उत्तराखंड का सबसे महत्वपूर्ण जिला माना जाता है — न केवल प्रशासनिक दृष्टि से बल्कि स्वास्थ्य सेवाओं के लिहाज से भी। ऐसे में यहां का ड्रग नियंत्रण विभाग (Drug Control Department) हमेशा से जिम्मेदारी के केंद्र में रहा है। लेकिन हालिया घटनाक्रम ने एक बार फिर विभाग की कार्यशैली और सक्रियता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
जानकारी के मुताबिक, बीते कुछ समय में देहरादून जिले में ड्रग विभाग ने कई मेडिकल स्टोरों और दवा डिस्ट्रीब्यूटरों के लाइसेंस निरस्त किए हैं। यह कार्रवाई तब शुरू हुई जब मुख्यालय स्तर से सख्त निर्देश जारी हुए। सवाल यह है कि अगर यह मुस्तैदी पहले दिखाई गई होती तो आज हालात इतने खराब नहीं होते। अधिकारियों की निष्क्रियता ने राजधानी के स्वास्थ्य तंत्र की नींव को कमजोर कर दिया है।
विशेषज्ञों का कहना है कि ड्रग विभाग का काम केवल औचक निरीक्षण करना नहीं, बल्कि दवा वितरण प्रणाली पर सतत निगरानी रखना भी है। कई महीनों तक विभाग की चुप्पी और लापरवाही के चलते बाजार में निम्न गुणवत्ता की दवाओं की बिक्री और स्टोरों में अनियमितताओं के मामले बढ़ते रहे। अब जब उच्च स्तर से फटकार लगी है, तो कार्रवाई की गति अचानक तेज हुई है। लेकिन यह दिखावटी सक्रियता कितनी स्थायी साबित होगी, यह देखने वाली बात होगी।
इसके विपरीत, देहरादून से सटा जनपद हरिद्वार इस मामले में एक बेहतर उदाहरण पेश कर रहा है। वहां ड्रग विभाग नियमित तौर पर जांच और कार्रवाई करता है। हरिद्वार में लगातार औचक निरीक्षण किए जाते हैं, जिससे मेडिकल स्टोर संचालकों में सतर्कता बनी रहती है। वहीं, देहरादून में अधिकारी अब तक “तुलनात्मक सीख” लेने को भी तैयार नहीं दिखते। विभाग के सूत्रों के अनुसार, हाल में राजधानी में जिन मेडिकल स्टोरों के लाइसेंस रद्द किए गए, उनमें कई ऐसे थे जो वर्षों से बिना मानकों का पालन किए काम कर रहे थे। यह विभागीय तंत्र की कमजोर निगरानी का सीधा परिणाम है। अगर यही रवैया जारी रहा, तो न केवल मरीजों की सुरक्षा खतरे में पड़ेगी बल्कि विभाग की साख भी पूरी तरह से खत्म हो सकती है।
अब जरूरत है कि ड्रग विभाग केवल “आदेश मिलने पर” नहीं बल्कि स्वप्रेरणा से अपनी जिम्मेदारी निभाए। राजधानी देहरादून की छवि प्रदेश की दवा सुरक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था का चेहरा है — और इस चेहरे पर दाग साफ करने के लिए सिस्टम में व्यापक बदलाव अनिवार्य हैं। प्रशासनिक जवाबदेही, पारदर्शिता और निरंतर निगरानी ही वे कदम हैं जो राजधानी की दिशा और दशा को सुधार सकते हैं।
