देहरादून । कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने मंगलवार को खुद के मुख्यमंत्री पद की दौड़ में शामिल न होने का एलान किया। इसी के साथ रावत ने प्रदेश में चुनाव सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़े जाने की रणनीति से भी अपने आप को अलग कर लिया।
चुनाव में प्रदेश कांग्रेस की ओर से चेहरा घोषित किए जाने के विवाद में पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत खुलकर मैदान में उतर आए। सोमवार को रावत ने कहा था कि प्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी चेहरा घोषित करे और जिसे चेहरा बनाए उसे ही मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार भी घोषित करे। अंदरखाने कई कांग्रेसी नेताओं ने इसे पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की खुद को चेहरा घोषित कराने की मुहिम के रूप में देखा था।
मंगलवार को पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने इस विवाद को खुद ही अपना नाम मुख्यमंत्री पद की दौड़ से बाहर कर समाप्त कर दिया। फेसबुक पर रावत ने लिखा कि प्रीतम सिंह सेनापति हैं तो उनको मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर दिया जाए। इसके साथ ही रावत ने यह भी कहा कि मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में इंदिरा हृदयेश का भी स्वागत है। इसके साथ ही पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने खुद को कांग्रेस की सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ने की रणनीति से भी अलग कर लिया। रावत ने लिखा कि कुछ समय के लिए व्यक्ति को उन्मुक्त रहना चाहिए।
उभर आई 2017 की कसक, खुद को किया अलग
पोस्ट में पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की 2017 के विधानसभा चुनाव की हार की कसक भी उभर कर सामने आई। रावत ने लिखा कि कभी-कभी कुछ नाम बोझ बन जाते हैं। उन्होंने लिखा- 2017 में कुछ ऐसी ही स्याही से मेरा नाम लिखा गया जो कांग्रेस के ऊपर बोझ बन गया। मैं, कांग्रेस को पापार्जित धन की स्याही से लिखे गए नाम के बोझ से भी मुक्त कर देना चाहता हूं, संयुक्त नेतृत्व में भी ऐसे नाम का बोझ पार्टी पर बना रहेगा।
पूर्व मुख्यमंत्री के रुख से और गहरा गया विवाद
सोमवार को नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश के सोशल मीडिया में चल रहे बयानों में कहा गया था कि कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह पार्टी के सेनापति हैं और सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाएगा। प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव भी दो दिन पहले कांग्रेस भवन में आयोजित प्रेसवार्ता में साफ कह गए थे कि पार्टी किसी को चेहरा घोषित नहीं करेगी। मंगलवार को रावत ने इसी विवाद को एक कदम आगे बढ़ा दिया।