“उत्तराखंड की आबकारी पॉलिसी बनी राजस्व का गेम चेंजर, सरकार के खजाने में 700 करोड़ से अधिक की अतिरिक्त आमदनी की उम्मीद” एक्साइज के साथ वेट में भी दिखेगी बढ़ोत्तरी……

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देहरादून: उत्तराखंड सरकार की नई आबकारी क्रय पॉलिसी इस बार राज्य के राजस्व के लिए “गेम चेंजर” साबित होती दिख रही है। आबकारी विभाग के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2025–26 में अब तक की स्थिति यह संकेत दे रही है कि विभाग 700 करोड़ रुपये से अधिक की अतिरिक्त आमदनी सरकार के खजाने में भरने जा रहा है। यह न सिर्फ आबकारी विभाग के लिए बड़ी उपलब्धि है, बल्कि सरकार की नीति-निर्माण क्षमता और पारदर्शी व्यवस्था का भी सबूत है।

सरकार के खजाने को मिलेगा बड़ा लाभ

आबकारी विभाग की इस नई क्रय पॉलिसी के तहत शराब की बिक्री में अभूतपूर्व बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है। अनुमान लगाया जा रहा है कि इस वित्तीय वर्ष में पूरे राज्य में पिछले साल की तुलना में 10 लाख से अधिक पेटी शराब यानि 60 लाख पेटी की बिक्री हो सकती है। यह आंकड़ा न केवल विभाग के निर्धारित लक्ष्यों को पार कर जाएगा, बल्कि राज्य के राजस्व में भी उल्लेखनीय वृद्धि सुनिश्चित करेगा। इससे वैट (VAT) और एक्साइज ड्यूटी दोनों से सरकार को करोड़ों रुपये की अतिरिक्त आमदनी होगी।

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विभागीय सूत्र बताते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में सरकार ने आबकारी पॉलिसी में कई संरचनात्मक सुधार किए हैं — जिनमें पारदर्शी प्रक्रिया, शराब दुकानों के आवंटन में डिजिटल निगरानी, और राजस्व लीकेज को रोकने के लिए सख्त निगरानी तंत्र शामिल है। इन बदलावों का सीधा असर अब सरकारी खजाने में दिखाई देने लगा है।

सिंडिकेट की नाराज़गी और भ्रामक प्रचार

हालांकि, इस नीति की सफलता से कुछ पुराने सिंडिकेट और निजी हित समूहों में नाराज़गी भी देखने को मिल रही है। कथित रूप से, इन्हीं समूहों द्वारा सोशल मीडिया पर भ्रामक प्रचार चलाया जा रहा है ताकि सरकार की छवि को नुकसान पहुंचाया जा सके। आबकारी विभाग के उच्चाधिकारियों का कहना है कि जो संगठन इन शिकायतों और आरोपों का दावा कर रहे हैं, वे न तो विभाग के पंजीकृत हितधारक हैं और न ही विभाग की आधिकारिक जानकारी में आते हैं। विभाग ने यह भी स्पष्ट किया है कि अब तक शराब निर्माता कंपनियों की ओर से किसी भी औपचारिक शिकायत की पुष्टि नहीं हुई है। इससे यह साफ होता है कि सोशल मीडिया पर फैलाए जा रहे अधिकतर दावे निराधार हैं और केवल भ्रम फैलाने के उद्देश्य से किए जा रहे हैं।

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नीति पर व्यापक विमर्श के बाद मिली हरी झंडी

आबकारी पॉलिसी को लागू करने से पहले इस पर राज्य मंत्रिमंडल में दो बार चर्चा की गई थी। तीसरी बार में नीति को अंतिम रूप देकर मंजूरी दी गई। सूत्रों के अनुसार, इस पॉलिसी का मसौदा तैयार करने से पहले पड़ोसी राज्यों — उत्तर प्रदेश, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश — की नीतियों का तुलनात्मक अध्ययन किया गया था ताकि उत्तराखंड के राजस्व हित और उपभोक्ताओं के हित दोनों का संतुलन बना रहे।

वित्तीय दृष्टि से यह नीति उत्तराखंड के लिए “लाभ की पॉलिसी” साबित हो रही है। इसमें राज्य सरकार ने कर दरों में मामूली संशोधन कर प्रतिस्पर्धा बनाए रखने की कोशिश की है, क्योंकि पड़ोसी राज्यों की तुलना में उत्तराखंड में शराब की कीमतें अब भी कुछ अधिक हैं। इसके बावजूद, बिक्री में वृद्धि यह दर्शाती है कि उपभोक्ताओं ने नई व्यवस्था को स्वीकार किया है।

नई आबकारी पॉलिसी में डिजिटल ट्रैकिंग सिस्टम और ई-पोर्टल के माध्यम से हर स्टॉक की निगरानी की जा रही है। इससे अवैध बिक्री और टैक्स चोरी की संभावनाओं पर प्रभावी रोक लगी है। विभाग का कहना है कि ई-गवर्नेंस आधारित निगरानी से अब लाइसेंसिंग, स्टॉक मूवमेंट और पेमेंट प्रोसेस पूरी तरह पारदर्शी हो चुके हैं।
राज्य सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि, “सरकार का मकसद केवल राजस्व बढ़ाना नहीं, बल्कि व्यवस्था में ईमानदारी और विश्वास कायम करना भी है। नई आबकारी पॉलिसी ने यही किया है — पारदर्शिता के साथ लाभ में वृद्धि।”

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वर्तमान वित्तीय वर्ष में आबकारी विभाग की उपलब्धियां यह साबित करती हैं कि जब नीतियों में स्पष्टता और ईमानदारी होती है तो नतीजे अपने आप सामने आते हैं। सोशल मीडिया पर फैलाए जा रहे भ्रम से इतर, वास्तविक आंकड़े सरकार की नीति की सफलता की गवाही दे रहे हैं।आने वाले महीनों में जैसे-जैसे बिक्री का ट्रेंड आगे बढ़ेगा, उत्तराखंड सरकार को उम्मीद है कि यह वित्तीय वर्ष राज्य के इतिहास में आबकारी राजस्व के लिहाज से अब तक का सबसे मजबूत साल साबित होगा।