देहरादून। इस बार उत्तराखंड में दीपावली पर न केवल दीये जले बल्कि शराब की बिक्री के आंकड़े भी पहले से कहीं अधिक “रोशन” हो गए। आबकारी विभाग के ताज़ा आंकड़े बताते हैं कि सिर्फ 15 दिनों के भीतर प्रदेशभर में 6.67 लाख पेटी शराब की बिक्री 367 करोड़ रुपये के पार पहुंच गई है। यह पिछले वर्ष की तुलना में एक ऐतिहासिक बढ़ोतरी है, जिससे स्पष्ट होता है कि इस बार त्योहारों के मौसम में शराब के शौकीनों ने जमकर जाम छलकाए।
अक्टूबर के अंतिम सप्ताह से लेकर दीपावली के बाद तक शराब की खपत में अचानक जबरदस्त उछाल देखा गया। देहरादून, हरिद्वार, हल्द्वानी, काशीपुर और ऊधमसिंहनगर जैसे प्रमुख शहरों में शराब दुकानों के बाहर लंबी कतारें नजर आईं। कई दुकानों पर प्रीमियम और विदेशी ब्रांड की कमी भी दर्ज की गई, जिससे मांग की तीव्रता का अंदाजा लगाया जा सकता है। बीयर, वाइन और व्हिस्की—तीनों कैटेगरी में बिक्री के रिकॉर्ड टूटे हैं। राजस्व में भारी बढ़ोतरी आबकारी विभाग के अनुसार, केवल देहरादून जिले में ही पिछले वर्ष की तुलना में लगभग 25 प्रतिशत अधिक राजस्व प्राप्त हुआ है। वहीं, पर्वतीय जिलों में भी शराब बिक्री में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। यह संकेत है कि अब ग्रामीण व अर्धशहरी क्षेत्रों में भी शराब उपभोग का चलन बढ़ रहा है। विभागीय अधिकारियों का कहना है कि दीपावली, धनतेरस और गोवर्धन पूजा जैसे त्योहारों के दौरान यह रुझान हर साल बढ़ता जा रहा है, लेकिन इस बार की बिक्री ने सभी पुराने रिकॉर्ड तोड़ दिए।
राज्य सरकार को इस बिक्री से करोड़ों रुपये का अतिरिक्त राजस्व मिला है। वित्त विशेषज्ञों का मानना है कि आर्थिक दृष्टि से यह सरकार के लिए राहत का संकेत है, लेकिन सामाजिक दृष्टि से यह प्रवृत्ति चिंता का विषय भी है।आबकारी विभाग की सख्ती और निगरानी दूसरी ओर, आबकारी विभाग इस पूरे दौरान सक्रिय और चौकस नजर आया। विभाग ने राज्यभर में विशेष अभियान चलाकर अवैध शराब और बिना लाइसेंस विक्रय पर कड़ी निगरानी रखी। कई जिलों में छापेमारी कर नकली शराब के जाल को तोड़ा गया। विभागीय अधिकारियों का कहना है कि “त्योहारों पर बढ़ती बिक्री के साथ अवैध कारोबार की संभावना भी बढ़ जाती है, इसलिए टीमों को 24 घंटे निगरानी पर रखा गया।”
कुल मिलाकर दिवाली पर उत्तराखंड में शराब की बिक्री ने न केवल रिकॉर्ड तोड़ा, बल्कि यह भी दिखाया कि राज्य में उपभोग की प्रवृत्तियां तेजी से बदल रही हैं। आबकारी विभाग चुस्त रहा, राजस्व बढ़ा, पर बाकी तंत्रों की सुस्ती और सामाजिक दृष्टि से बढ़ती शराब निर्भरता पर सवाल भी उठे हैं। दीपावली की यह “तरल चमक” सरकार के लिए राजस्व का तोहफा साबित हुई है, लेकिन समाज के लिए संयम और सजगता की नई चुनौती भी पेश कर रही है।


