रुड़की में अहम की लड़ाई के चलते गर्त में जा रही सरकार की यू-कोट,वी पे योजना, सर्जन वीरान मरीज परेशान….

ख़बर शेयर करें

रुड़की: उत्तराखंड सरकार जहां विशेषज्ञ डॉक्टरों की भारी कमी से जूझ रही है, वहीं रुड़की अस्पताल में स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर प्रशासनिक अड़ियल रवैया मरीजों पर भारी पड़ रहा है। यू-कोट वी-पे योजना के अंतर्गत नियुक्त एक सर्जन को महज इस वजह से काम करने से रोक दिया गया है कि मुख्यालय स्तर से उनका अभी तक रिन्युअल नहीं हुआ है। गौर करने वाली बात यह है कि प्रदेशभर में यू-कोट वी– पे योजना के तहत रखे गए अधिकांश डॉक्टरों का अनुबंध समाप्त होने के बावजूद भी, अस्पताल प्रशासन मरीजों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए उन्हें कार्य जारी रखने की अनुमति दे रहा है। लेकिन रुड़की का यह मामला इससे बिल्कुल विपरीत है।यहां अस्पताल प्रशासन और डॉक्टर के बीच लंबे समय से चली आ रही खींचतान मरीजों के इलाज में बाधा बन रही है। बताया जा रहा है कि संबंधित डॉक्टर एक अनुभवी सर्जन हैं, जिनकी सेवाओं से सैकड़ों मरीज लाभान्वित हो चुके हैं। लेकिन प्रशासनिक स्तर पर चली आ रही व्यक्तिगत नाराज़गी के चलते उन्हें ड्यूटी पर आने के बावजूद ऑपरेशन करने या मरीजों का इलाज करने की अनुमति नहीं दी जा रही है।

यह भी पढ़ें -  एसएसपी अजय सिंह को मिली गोपनीय सूचना पर दून पुलिस को मिली बडी सफलता, 05 बांग्लादेशी गिरफ्तार....

स्थानीय सूत्रों के अनुसार, यह टकराव व्यक्तिगत अहं और “नाक की लड़ाई” का रूप ले चुका है, जिसमें नुकसान केवल आम मरीजों का हो रहा है। अस्पताल में सर्जन की आवश्यकता होने के बावजूद मरीजों को रेफर किया जा रहा है या उनकी सर्जरी अनिश्चितकाल के लिए टाली जा रही है।

यह भी पढ़ें -  अत्यधिक शुल्क वृद्धि पर कार्रवाई: डालनवाला स्थित स्कूल को शिक्षा विभाग ने दिए सख्त निर्देश...

इससे अस्पताल में आने वाले मरीजों और उनके परिजनों में रोष फैल रहा है। कई मरीजों ने शिकायत की है कि प्रशासनिक लापरवाही और हठधर्मिता के कारण उन्हें समय पर इलाज नहीं मिल पा रहा है, जिससे उनकी बीमारी गंभीर हो रही है।

चिकित्सा विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक मुख्यालय से रिन्युअल की औपचारिकता पूरी नहीं होती, तब तक वैकल्पिक रूप से कार्य जारी रखने की अनुमति मिल सकती है, जैसा कि प्रदेश के अन्य अस्पतालों में हो रहा है। लेकिन रुड़की में प्रशासन का व्यवहार अपवाद की तरह सामने आया है।
इस मुद्दे पर अस्पताल प्रशासन की ओर से अब तक कोई स्पष्ट बयान सामने नहीं आया है, जबकि डॉक्टर ने भी आधिकारिक स्तर पर काम पर लौटने की इच्छा जताई है। स्वास्थ्य विभाग से मांग की जा रही है कि इस मामले में शीघ्र हस्तक्षेप कर मरीजों के हित में उचित निर्णय लिया जाए।
अगर जल्द ही समाधान नहीं निकला, तो यह प्रशासनिक जिद मरीजों की जान पर भारी पड़ सकती है।