देहरादून । किसान आंदोलन के नाम पर गणतंत्र दिवस पर की गई हिंसा, लाल क़िले पर हुई वारदातों व दो दिन के घटना क्रम से मुझे लगता है कि व्यावहारिक रूप में किसान आंदोलन लगभग दम तोड़ चुका है।किंतु किसान आंदोलन के नाम पर अभी गतिविधियाँ चलेंगी और विपक्ष उनमें अपनी राजनीति जमाने की कोशिश करेगा।
आज आंदोलन का जो हश्र दिखाई दे रहा है उससे साफ़ है कि राकेश टिकैत व उनके बड़े भाई नरेश टिकैत किसानों को सही नेतृत्व देने में असफल रहे । साथ ही वे आंदोलन में घुस आए राजनीतिक दलों व अलगाव वादियों के सही मंसूबे पढ़ने में पहले भी नाकामयाब रहे और आज भी उनकी हालत वैसी ही है। यदि यह कहा जाए कि इन ताक़तों जो सीधे तौर पर मोदी विरोधी है ने टिकैत बंधुओं की महत्वकांक्षाओं का फ़ायदा उठाते हुए उन्हें अपने हिसाब से प्रयोग किया और टिकैत बंधु उनके हाथों में खेलते रहे और अब भी खेल रहे है।
कड़वा सच यह है कि राकेश टिकैत,नरेश टिकैत को पता ही नहीं चल रहा है कि राहुल गांधी,अखिलेश यादव ,अरविंद केजरीवाल ,अजित सिंह जैसे नेता उनकी कुर्सी खिसका कर अपना राजनीतिक वजूद खड़ा करने की कोशिश में हैं।ये नेता किसानों के कंधों पर उत्तरप्रदेश विशेषतः प. उत्तर प्रदेश में मोदी-योगी विरोध के प्रयास में है।ऐसे में यदि यह कहा जाए कि किसान आंदोलन तो सही अर्थों में ख़त्म हो चुका है और विपक्ष ने अपनी आगे की राजनीति शुरू कर दी है, ग़लत नहीं होगा।हाँ, अभी यह राजनीति किसान आंदोलन के नाम पर होगी। लेकिन यह सिलसिला कब तक चलेगा यह कहना मुश्किल है।
यह साफ़ है कि कांग्रेस, सपा, रालोद जैसे दल मोदी-योगी से गहरी चोट खाए बैठे हैं और जिस तरह मोदी- योगी की लोकप्रियता लगातार बढ़ रही है उससे उन्हें यह भी साफ़ दिखाई दे रहा है कि उत्तर प्रदेश में अभी उनके लिए कोई सम्भावना नहीं है। इस मध्य इन दलों को किसान आंदोलन में जो थोड़ी बहुत राजनीतिक आशा दिखाई दे रही है अब वे लाभ उठाने की फ़िराक़ में हैं।
दूसरी ओर आप ने उत्तरप्रदेश सहित छः और राज्यों में चुनाव लड़ने की जो घोषणा की है उसे लेकर वह किसान आंदोलन में अपने लिए सम्भावना खोजने की कोशिश में है। इसी कारण वह अरविंद केजरीवाल ,मनीष सिसोदिया किसानों के ख़ैर ख़्वाह बने हुए है।केजरीवाल जिन्होंने पहले कृषि क़ानूनों को दिल्ली में लागू किया था ने पलटी मारी और क़ानूनों को फाड़ने का नाटक करते हुए इन्हें वापस ले लिया।
इस सारे प्रकरण के बीच विपक्षी नेता यह नहीं समझ रहे कि जहां भारत का नागरिक देश का अपमान व अराजकता कभी सहन नहीं कर सकता वहीं कुछ भ्रमित लोगों को छोड़ कर अधिकांश किसान व आम जन कृषि क़ानूनों को किसान हित में मानते हैं। ऐसे में विपक्ष को फिर निराशा का सामना करना होगा , शायद पहले से भी अधिक।