देहरादून, उत्तराखंड की राजधानी और प्रदेश का सबसे बड़ा नगर निगम क्षेत्र, इन दिनों गंदगी और अव्यवस्था के गंभीर संकट से जूझ रहा है। नगर निगम की तमाम दावों और व्यवस्थाओं के बावजूद शहर की हालत बद से बदतर होती जा रही है। जगह-जगह पड़े कूड़े के ढेरों ने नगर निगम की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
शहर के डालनवाला क्षेत्र, जिसे देहरादून का सबसे पॉश इलाका माना जाता है, की स्थिति भी कुछ अलग नहीं है। तेगबहादुर रोड पर तो हालात इस कदर बिगड़ गए हैं कि सड़क पर कूड़े का बड़ा ढेर जमा हो गए हैं। स्थानीय लोगों की मानें तो कई दिनों से यहां से कूड़ा नहीं उठाया गया है, जिससे दुर्गंध और मच्छरों का प्रकोप बढ़ गया है। यही वह सड़क है जहां से हर सुबह हजारों की संख्या में स्कूली बच्चे गुजरते हैं। लेकिन अफसोस, नगर निगम के जिम्मेदार अधिकारी इस पर ध्यान देने को तैयार नहीं हैं।
नगर निगम ने सफाई व्यवस्था की निगरानी के लिए एक बड़ी टीम तैनात की हुई है। लेकिन वास्तविकता यह है कि यह टीम कागजों तक ही सीमित नजर आ रही है। शहर की साफ-सफाई की नियमित जांच और व्यवस्था के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति हो रही है। निगरानी अधिकारी और कर्मचारी शायद ही कभी जमीनी स्तर पर उतरते हैं, यही वजह है कि लोग खुद ही सड़क किनारे कूड़ा डालने को मजबूर हैं।
स्थानीय निवासी कहते हैं कि नगर निगम सिर्फ टैक्स वसूलने में सक्रिय है, लेकिन मूलभूत सुविधाएं देने में पूरी तरह विफल है। तेगबहादुर रोड की स्थिति न केवल शहर की छवि को धूमिल कर रही है, बल्कि स्वास्थ्य के लिहाज से भी खतरे का संकेत दे रही है। बच्चों और बुजुर्गों में सांस की दिक्कतें बढ़ रही हैं और डेंगू-मलेरिया जैसी बीमारियों का खतरा भी मंडरा रहा है।
अब सवाल यह उठता है कि जब राजधानी का यह हाल है तो छोटे शहरों और कस्बों की स्थिति क्या होगी? जनता की उम्मीदें नगर निगम से अब टूटने लगी हैं। यदि शीघ्र ही सफाई व्यवस्था में सुधार नहीं हुआ तो देहरादून की गिनती भी गंदे शहरों में होने लगेगी।
नगर निगम को चाहिए कि वह तत्काल प्रभाव से सख्त कार्रवाई करे, निगरानी टीम को जवाबदेह बनाए और जनता की शिकायतों को प्राथमिकता दे, वरना आने वाले समय में हालात और भी बिगड़ सकते हैं।
