उत्तराखंड में राजनीति का गिरता स्तर: शराब की दुकान बनी सियासत का केंद्र….निजी हित के लिए आंदोलन नहीं होगा बर्दाश्त : आयुक्त

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उत्तराखंड की राजनीति इन दिनों अजीब मोड़ पर खड़ी दिखाई दे रही है। राज्य में बेरोजगारी, पलायन, शिक्षा, सहकारिता जैसे गंभीर मुद्दे तो हैं, लेकिन राजनीतिक बहसें इनसे हटकर अब शराब की एक दुकान के इर्द-गिर्द घूम रही हैं। सवाल यह उठता है कि क्या अब राज्य की राजनीति इतनी खोखली हो चुकी है कि नेताओं को जनता के असली मुद्दों से ज़्यादा दिलचस्पी एक दुकान से हो गई है? दरअसल, हाल के दिनों में टिहरी के ढालवाला की एक शराब की दुकान को बंद कराने को लेकर कुछ स्थानीय नेताओं ने अभियान छेड़ दिया है। ये नेता इसे सामाजिक नैतिकता और जनभावनाओं से जोड़ रहे हैं, जबकि दूसरी तरफ कई लोग इसे एक सोची-समझी शराब के पुराने तस्करों की साजिश बता रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि शराब की इस दुकान को बंद कराने के पीछे कुछ शराब तस्करों की भूमिका भी जुड़ी है, जो वैध व्यवसाय को खत्म कर अपने अवैध धंधे को बढ़ावा देना चाहते हैं। स्थानीय स्तर पर भी यह मामला केवल दुकान का नहीं बल्कि अवैध के आगे वैध व्यवस्था को हाशिए पर लाना माना जा रहा है । उक्त शराब दुकान में काम करने वाले सभी कर्मचारी स्थानीय युवक हैं, जिनकी आजीविका इसी पर निर्भर है। दुकान के बंद होने की स्थिति में ये युवा फिर से बेरोजगारी की मार झेलने को मजबूर होंगे।
ऐसे में यह सोचने वाली बात है कि क्या राजनीति का स्तर इतना नीचे गिर चुका है कि अब वैध व्यवसायों को भी सियासत की बलि चढ़ाया जाएगा? राज्य की जनता अब यह उम्मीद करती है कि नेता अपनी ऊर्जा और वक्त जनता के असली मुद्दों — जैसे शिक्षा, पलायन, और भ्रष्टाचार — पर खर्च करें, न कि शराब की दुकान के नाम पर राजनीति की रोटियां सेकने में। उत्तराखंड की राजनीति को अब परिपक्व सोच और जनसेवा की दिशा में लौटने की ज़रूरत है, वरना जनता का विश्वास नेताओं से पूरी तरह उठता देर नहीं लगेगी।