स्वास्थ्य महानिदेशालय स्टोर की जाँच बनी मजाक ?आरोप लगने के बाद भी स्टोर में जमे मुलाजिमों को कोन दे रहा संरक्षण ? सीएम धामी की जीरो टॉलरेंस नीति को कौन लगा रहा पलीता…?

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देहरादून। उत्तराखंड सरकार लगातार भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति को लेकर सख्त रुख अपनाने का दावा करती रही है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी स्वयं कई मौकों पर स्पष्ट कर चुके हैं कि भ्रष्टाचार बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। लेकिन, स्वास्थ्य विभाग के स्टोर में सामने आए एक ताजा मामले ने सरकार की इस नीति पर सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं।

दरअसल, स्वास्थ्य विभाग में मशीनों की खरीद को लेकर गंभीर शिकायत दर्ज की गई थी। शिकायत में आरोप लगाया गया कि मशीनों की खरीद में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी और हेरफेर किया गया है। मुख्यमंत्री ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए तत्काल सचिव स्वास्थ्य को जांच के आदेश दिए। इसके बाद एक टीम गठित कर जांच शुरू भी कर दी गई।

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लेकिन यहां सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि जांच जिन अनुभागों और अधिकारियों के खिलाफ चल रही है, वे आज भी अपनी कुर्सी पर बने हुए हैं। जांच की पारदर्शिता और निष्पक्षता के लिए यह जरूरी था कि संबंधित अधिकारियों को तत्काल प्रभाव से उस स्थान से हटाया जाता ताकि जांच प्रभावित न हो। लेकिन ऐसा न होना कई तरह की शंकाओं को जन्म दे रहा है।

विशेषज्ञों का कहना है कि जांच का पहला और सबसे बुनियादी नियम यही होता है कि जिन अधिकारियों पर सवाल उठे हों, उन्हें तत्काल पद से हटाया जाए। तभी निष्पक्ष और स्वतंत्र जांच संभव हो सकती है। लेकिन स्वास्थ्य विभाग में हो रही इस जांच को लेकर ऐसा प्रतीत हो रहा है कि यह केवल औपचारिकता भर है।

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सूत्र बताते हैं कि विभाग के अधिकारी इतने निडर हैं कि वे सरकार की जीरो टॉलरेंस नीति को भी ठेंगा दिखा रहे हैं। शिकायत दर्ज होने और जांच आदेश जारी होने के बावजूद अधिकारी उसी पद पर बने हुए हैं और रोजाना उन्हीं फाइलों को निपटा रहे हैं, जिन पर जांच चल रही है। इससे साफ है कि जांच प्रभावित होने का खतरा बना हुआ है।

स्थानीय राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यदि सरकार वास्तव में इस मामले को लेकर गंभीर होती, तो अब तक संबंधित अधिकारियों को न केवल हटाया जा चुका होता बल्कि उनके खिलाफ निलंबन जैसी कार्रवाई भी हो चुकी होती। लेकिन चूंकि ऐसा नहीं हुआ, इसलिए सरकार की मंशा पर भी सवाल उठने लगे हैं।

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जनता के बीच यह चर्चा आम है कि यह जांच “कागजों में पूरी करने” की कवायद भर है। यदि ऐसा ही रहा तो न तो दोषियों पर कार्रवाई होगी और न ही भ्रष्टाचार पर अंकुश लग सकेगा।

कुल मिलाकर, स्वास्थ्य विभाग में मशीनों की खरीद की जांच शुरू जरूर हो गई है, लेकिन जिस तरह से अधिकारियों को पद से न हटाया गया है, उससे सरकार की साख पर असर पड़ रहा है। अब देखना होगा कि आने वाले दिनों में मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य विभाग इस जांच को किस तरह अंजाम तक पहुंचाते हैं। क्या यह सचमुच जीरो टॉलरेंस की मिसाल बनेगी या फिर केवल एक और अधूरी कहानी साबित होगी? इसका जवाब वक्त ही देगा।