नकल विरोधी कानून से योग्यता और क्षमता के आधार पर 25000 से ज्यादा प्रतिभावानों को पिछले 3 साल में मिली सरकारी नौकरियां
पेपर लीक के नाम पर मचा हो-हल्ला पूरी तरह से राजनीति से प्रेरित
पहले से ही पेपर रद्द की मांग करने वाले लोग पार्टी विशेष के कार्यकर्ता
देश के सबसे सख्त नकल विरोधी कानून के अंतर्गत की जा रही है दोषियों पर कार्रवाई
जो व्यक्ति पेपर लीक का ड्रामा कर रहा, उसी पर है संलिप्तता का संगीन आरोप
संयुक्त प्रतियोगिता परीक्षा छात्र मंच के प्रतिनिधियों ने गृह सचिव शैलेश बगौली को सौंपा ज्ञापन
उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में मंगलवार को एक दिलचस्प नज़ारा देखने को मिला। सड़कों पर दो अलग-अलग गुट मौजूद थे। एक ओर कुछ परीक्षा रद्द करने की माँग पर अड़े हुए थे, वहीं दूसरी ओर बड़ी संख्या में छात्र खुलकर यह कह रहे थे कि परीक्षा पूरी तरह निष्पक्ष और पारदर्शी रही है, इसलिए इसे किसी भी कीमत पर रद्द नहीं होना चाहिए।
इन छात्रों ने साफ शब्दों में कहा कि न तो कहीं नकल हुई है और न ही पेपर लीक की कोई घटना सामने आई है। उन्हें मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा लागू किए गए सख्त नकल विरोधी कानून और सरकार की पारदर्शी भर्ती व्यवस्था पर पूरा भरोसा है। यही वजह है कि इन छात्रों का कहना था कि प्रदेश के इतिहास में पहली बार युवाओं को इस स्तर पर अवसर मिल रहे हैं। अब तक 25,000 से अधिक युवाओं को नियुक्ति मिल चुकी है और यह उपलब्धि महज़ चार साल में हासिल हुई है। आज तक कोई भी सरकार ऐसा रिकॉर्ड बनाने में सफल नहीं रही।
संयुक्त प्रतियोगिता परीक्षा छात्र मंच के प्रतिनिधियों ने गृह सचिव शैलेश बगौली को ज्ञापन सौंपते हुए मांग की कि UKSSSC के अंतर्गत हुई परीक्षा को रद्द न किया जाए। उन्होंने कहा कि कुछ लोग राजनीतिक स्वार्थों के लिए इस परीक्षा को जबरन पेपर लीक बताने में लगे हैं, जबकि ईमानदारी से परीक्षा की तैयारी करने वाले अभ्यर्थियों के हितों को इससे गहरी ठेस पहुँच रही है।
छात्रों का कहना है कि इस सरकार ने युवाओं को यह भरोसा दिलाया है कि मेहनत और योग्यता के दम पर ही नौकरी मिलेगी, न कि सिफारिश या पैसे के दम पर। आज युवा वर्ग खुलकर कह रहा है कि यह सरकार उनके भविष्य की गारंटी है, क्योंकि नकल माफियाओं पर कड़ी कार्रवाई हुई है और हर भर्ती प्रक्रिया पारदर्शी ढंग से संपन्न हो रही है।
अब बड़ा सवाल यह खड़ा हो रहा है कि जो लोग पेपर लीक का मुद्दा बनाकर सड़कों पर बवाल कर रहे हैं, क्या वे वाकई छात्र हैं और उनका यह आंदोलन वास्तव में छात्रों के हित में है या फिर इसके पीछे कोई राजनीतिक मंशा छिपी है? क्योंकि इस आंदोलन की अगुवाई बॉबी पंवार कर रहे हैं, जिन्होंने पहले ही अपनी अलग पार्टी बना ली है। छात्रों के बीच में जाकर वो खुद को छात्र कहते हैं जबकि, उनका छात्रों से दूर-दूर तक कुछ लेना-देना नहीं। पुलिस की जांच में इस पेपर लीक में उनकी संलिप्तता पर भी संदेह है। ऐसे में यह आशंका लगातार मज़बूत होती जा रही है कि पेपर रद्द कराने की मांग दरअसल युवाओं को गुमराह करके उन्हें राजनीति में जोड़ने की एक सुनियोजित साज़िश है।
यह तथ्य भी नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता कि पहले इन्हीं लोगों ने खराब मौसम का बहाना बनाकर परीक्षा टालने की मांग उठाई थी। और जब सरकार ने परीक्षा कराने का ठोस निर्णय लिया, तो अचानक “पेपर लीक” का जिन्न निकाल दिया गया। मज़ेदार बात यह रही कि सोशल मीडिया पर जो लोग मौसम का हवाला देकर परीक्षा रोकने की मांग कर रहे थे, उन्हीं ने आगे चलकर परीक्षा भी दी।
छात्रों का सवाल बिल्कुल वाजिब है अगर परीक्षा रद्द होती है तो क्या यह उन मेहनती युवाओं के साथ अन्याय नहीं होगा जिन्होंने दिन-रात पढ़ाई करके परीक्षा दी है? रही बात पेपर लीक की तो प्रशासन पहले ही ऐसी किसी आशंका को खारिज कर चुका है। यहाँ तक कि 2024 में नीट परीक्षा के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने भी यह स्पष्ट किया था कि मात्र पेपर के बाहर आने की चर्चा होने से उसे ‘पेपर लीक’ नहीं कहा जा सकता।
युवाओं का यह विश्वास बताता है कि धामी सरकार ने वास्तव में एक नया दौर शुरू किया है जहाँ मेहनत करने वाले छात्रों को नौकरी मिल रही है, जहाँ योग्यता ही सफलता का पैमाना है, और जहाँ नकल माफियाओं की कोई जगह नहीं है। यह विश्वास अपने आप में इस बात का प्रमाण है कि धामी सरकार युवाओं के भविष्य की सबसे मज़बूत गारंटी है।
