देहरादून। राज्य की औद्योगिक विकास एजेंसी सिडकुल (SIDCUL) एक बार फिर चर्चा में है। कारण है — उसकी ओर से की गई एक भूमि आवंटन प्रक्रिया, जिसने औद्योगिक नीति की पारदर्शिता और प्राथमिकता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। जानकारी के अनुसार, सिडकुल ने पूर्व में आरबीआई और नाबार्ड को मात्र 10 हजार रुपए प्रति गज की दर से भूमि आवासीय प्रयोजन के लिए दी थी। अब वही एजेंसी उसी क्षेत्र में एक निजी कंपनी को 46 हजार रुपए प्रति गज की दर से भूमि आवंटित कर रही है। वहीं कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करण महारा ने भी सवाल खड़े करते हुए कहा है कि सिस्टम में इस प्रकार के खेल चल रहे है जो किसी भी सूरत में सही नहीं ठहराए जा सकते।।
सिडकुल द्वारा यह भूमि ई-टेंडर के माध्यम से आवंटित की गई है। बताया जा रहा है कि यह प्रक्रिया ऑनलाइन पूरी की गई, लेकिन किसने कितनी बोली लगाई, यह बात सिर्फ आवेदक ही जनता है।। कुल 17190 वर्ग मीटर भूमि के इस सौदे में सिडकुल को भारी आर्थिक लाभ तो जरूर हुआ है, लेकिन इसके साथ ही कई शंकाएं और चर्चाएं भी उठ खड़ी हुई हैं। चर्चा का सबसे बड़ा बिंदु यह है कि यह भूमि औद्योगिक प्रयोजन के बजाय आवासीय उपयोग के लिए आवंटित की जा रही है, जबकि सिडकुल का मूल उद्देश्य राज्य में उद्योग स्थापित कर रोजगार के अवसर बढ़ाना है। जबकि सिडकुल के अधिकारियों का तर्क है कि यह भूखंड पहले से ही आवासीय कार्य के लिए तय किया गया था। ।। वहीं जानकारों का कहना है कि यदि यह भूमि किसी औद्योगिक इकाई को दी जाती, तो इससे न केवल सैकड़ों युवाओं को रोजगार के अवसर मिल सकते थे बल्कि राज्य की औद्योगिक छवि भी मजबूत होती। इसके विपरीत, इसे आवासीय प्रोजेक्ट के रूप में बेचना सिडकुल की नीतिगत दिशा से भटकाव के रूप में देखा जा रहा है।जानकारों का कहना है कि सिडकुल को अपनी प्राथमिकता औद्योगिक निवेश और रोजगार सृजन पर रखनी चाहिए, न कि रियल एस्टेट गतिविधियों पर। यदि औद्योगिक क्षेत्र की जमीनें धीरे-धीरे आवासीय में परिवर्तित होने लगीं, तो आने वाले वर्षों में राज्य में उद्योग लगाने के लिए पर्याप्त भूमि उपलब्ध नहीं रहेगी।
सिडकुल के अधिकारी हालांकि दावा कर रहे हैं कि यह पूरी प्रक्रिया पारदर्शी और नियमों के अनुरूप की गई है। उनके अनुसार, सभी आवंटन ई-टेंडरिंग सिस्टम के माध्यम से किए जाते हैं, जिसमें सबसे ऊंची बोली लगाने वाले को भूमि दी जाती है।
स्थानीय स्तर पर यह मुद्दा अब चर्चा का विषय बन गया है।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह मामला केवल दरों का नहीं बल्कि औद्योगिक नीति के मूल सिद्धांतों से जुड़ा है। यदि सिडकुल जैसी संस्थाएं औद्योगिक भूमि को आवासीय परियोजनाओं में परिवर्तित करने लगेंगी, तो इससे राज्य की औद्योगिक वृद्धि और रोजगार सृजन दोनों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
