देश में नौकरशाही (ब्यूरोक्रेसी) के अंदर षड्यंत्र और गुटबाजी की राजनीति अब कोई नई बात नहीं रह गई है। हालात ऐसे बन गए हैं कि अब अधिकारी न केवल अपने हितों के लिए राजनीति कर रहे हैं, बल्कि अपने ही साथी अधिकारियों के खिलाफ साजिशें रचने से भी पीछे नहीं हट रहे। इसमें खबर निवासो की भूमिका भी कम नहीं है, क्योंकि कुछ खबरनवीसों को हायर करके बड़े स्तर पर छवि निर्माण और विरोधियों की छवि धूमिल करने का खेल खेला जा रहा है।
सूत्रों के मुताबिक, कुछ अधिकारी अपने विरोधियों को कमजोर करने के लिए पत्रकारों के जरिए ख़बरें प्लांट करवा रहे हैं। इसके लिए हर माह लाखों रुपये तक खर्च किए जाते रहे। वहीं, दूसरी ओर, राजनीतिक गलियारों में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए ये अधिकारी राजनेताओं की देश की राजधानी में महफिलों में शिरकत कर खुद को उनका खास बताते है वहीं प्रदेश की राजधानी में सत्ता का सबसे खास व्यक्ति साबित करने में जुटे रहते हैं।
देश की राजधानी से लेकर प्रदेश की राजधानी तक, यह खेल बड़े स्तर पर चल रहा है। कुछ अधिकारियों ने बाकायदा कुछ पत्रकारों को ‘हायर’ कर रखा है, जिनका काम उनके विरोधियों के खिलाफ खबरें गढ़ना और उन्हें मीडिया में उछालना है। यह पूरा षड्यंत्र बेहद संगठित तरीके से चलता है, जहां पहले किसी अधिकारी के खिलाफ खबरें छपवाई जाती हैं, फिर उन्हीं खबरों का इस्तेमाल कर प्रशासनिक और राजनीतिक स्तर पर उस अधिकारी को कमजोर किया जाता है। एक ओर जहां ईमानदार अधिकारी अपने काम में लगे रहते हैं, वहीं दूसरी ओर सत्ता के करीब रहने के लिए कुछ अफसर खबरों का बाजार सजाने में जुटे हैं। इसका नतीजा यह होता है कि आम जनता की समस्याएं पीछे छूट जाती हैं और ब्यूरोक्रेसी में केवल रसूख और साजिशों का खेल चलता रहता है।आज की ब्यूरोक्रेसी में सिर्फ प्रशासनिक क्षमता ही नहीं, बल्कि राजनीतिक संबंध भी सफलता की गारंटी बन गए हैं। कई अधिकारी राजनेताओं के नजदीक पहुंचने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाते हैं। कभी किसी बड़े आयोजन में पहुंचकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं, तो कभी सीधे राजनीतिक नेताओं के साथ करीबी दिखाने के लिए निजी संबंधों का सहारा लेते हैं।
इस पूरे खेल में सबसे बड़ा नुकसान उन अधिकारियों को होता है, जो बिना किसी गुटबाजी के ईमानदारी से काम कर रहे होते हैं। उन्हें षड्यंत्रों में फंसाकर या फिर झूठी खबरों के जरिए कमजोर करने की कोशिश की जाती है। इससे न केवल प्रशासनिक कार्यों में बाधा उत्पन्न होती है, बल्कि आम जनता का भरोसा भी तंत्र से उठने लगता है। अब सवाल यह उठता है कि क्या सरकार और प्रशासन इस तरह की साजिशों को रोकने के लिए कोई कदम उठाएगा? या फिर ब्यूरोक्रेसी में षड्यंत्र का यह खेल यूं ही चलता रहेगा? फिलहाल, इस पूरे मामले पर सरकार की कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन अगर इसी तरह अधिकारी अपनी गुटबाजी और मीडिया मैनेजमेंट में उलझे रहे, तो इसका खामियाजा प्रशासनिक व्यवस्था को भुगतना पड़ेगा।
