संविदा कर्मचारी पर भरोसा करना पड़ा भारी…पौड़ी में उपनल कर्मचारी ने सरकारी खजाने से पत्नी के खाते में डाले लाखों रुपए….

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पौड़ी जनपद में उपनल व्यवस्था को लेकर एक बड़ा सवाल उठ खड़ा हुआ है। यहां एक संविदा उपनल कर्मचारी के ऊपर लगभग 75 लाख रुपये की सरकारी धनराशि को फर्जी तरीके से अपनी पत्नी के खाते में ट्रांसफर कराने का सनसनीखेज मामला सामने आया है। इस पूरे प्रकरण ने प्रशासनिक हलकों में हड़कंप मचा दिया है और उपनल व्यवस्था पर भी एक बार फिर से गंभीर बहस छेड़ दी है।

पूरा मामला ग्राम कफलना, तहसील पौड़ी निवासी करन रावत की शिकायत से शुरू हुआ। करन रावत द्वारा जिलाधिकारी पौड़ी को प्रेषित शिकायती पत्र में आरोप लगाया गया है कि जिला पंचायत पौड़ी में कार्यरत उपनलकर्मी किशोर ने सरकारी तंत्र का दुरुपयोग करते हुए अपनी पत्नी नीलम के बैंक खाते में करीब 75 लाख रुपये का फर्जी भुगतान ट्रांसफर कराया है। इतना ही नहीं, इस भुगतान को अंजाम देने के लिए ब्लैंक चेकों का इस्तेमाल किया गया, जिससे यह स्पष्ट संकेत मिलता है कि मामला सुनियोजित तरीके से अंजाम दिया गया।

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शिकायत में यह भी दावा किया गया है कि स्वयं उपनलकर्मी किशोर द्वारा शपथ पत्र एवं ऑडिट रिपोर्ट में इस वित्तीय अनियमितता की पुष्टि की गई है। यह बात और भी अधिक चौंकाने वाली है कि एक संविदा कर्मचारी ने इस स्तर तक पहुँचकर इतना बड़ा घोटाला कैसे अंजाम दे दिया और उस दौरान संबंधित अधिकारियों की क्या भूमिका रही, यह भी अब जांच का विषय है।

जिला प्रशासन ने मामले की गंभीरता को भांपते हुए तत्काल संज्ञान लिया और एक तीन सदस्यीय जांच समिति का गठन किया है। यह समिति मुख्य विकास अधिकारी पौड़ी की अध्यक्षता में गठित की गई है, जिसमें उपजिलाधिकारी , पौड़ी एवं मुख्य कोषाधिकारी पौड़ी को सदस्य नामित किया गया है। समिति को स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि वे टेंडर प्रक्रिया, भुगतान की प्रक्रिया, बैंक खातों की जांच तथा इसमें संलिप्त कर्मचारियों/अधिकारियों की भूमिका की विस्तृत जांच करते हुए एक पक्ष के भीतर रिपोर्ट प्रस्तुत करें।

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यह मामला न केवल भ्रष्टाचार का संकेत देता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि संविदा कर्मचारियों की व्यवस्था और उस पर निगरानी की गंभीर कमी है। उपनल जैसी व्यवस्था, जो पूर्व सैनिकों के पुनर्वास के उद्देश्य से शुरू की गई थी, अब कई जगहों पर दुरुपयोग का माध्यम बनती नजर आ रही है। यह घटना सरकार को इस व्यवस्था पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर करती है कि आखिर कैसे एक संविदा कर्मचारी को इतनी वित्तीय जिम्मेदारियां दी जा रही हैं, और वह किस आधार पर बैंकों से लेकर टेंडर तक की प्रक्रियाओं को प्रभावित कर रहा है।

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प्रशासनिक स्तर पर यह देखना भी जरूरी होगा कि इस भ्रष्टाचार में कहीं कोई स्थायी अधिकारी भी शामिल तो नहीं था। जांच समिति की रिपोर्ट आने के बाद ही यह स्पष्ट हो सकेगा कि यह घोटाला अकेले एक कर्मचारी का था या इसके पीछे कोई गहरी साजिश और नेटवर्क काम कर रहा था।

फिलहाल जिले में इस मामले को लेकर चर्चाएं तेज हैं और जनता के बीच सरकारी तंत्र की पारदर्शिता को लेकर असंतोष भी बढ़ता दिख रहा है। अब सभी की निगाहें जांच समिति की रिपोर्ट और उसके आधार पर होने वाली कार्रवाई पर टिकी हैं।