देहरादून। दून मेडिकल कॉलेज के प्रशासनिक अधिकारी पद पर मृतक आश्रित कोटे के तहत नियुक्त एक मुलाजिम का मामला एक बार फिर सुर्खियों में है। लगभग चार साल पहले फर्जी और भ्रामक जानकारी के आधार पर नौकरी हासिल करने का मामला सामने आने के बाद सरकार ने उसे सेवा से बर्खास्त कर दिया था। उस समय विभागीय जांच में यह स्पष्ट हुआ था कि संबंधित कर्मचारी ने मृतक आश्रित श्रेणी में नौकरी पाने के लिए तथ्य छुपाए और गलत दस्तावेजों का सहारा लिया। इसी आधार पर शासन ने उसे तुरंत प्रभाव से पद से हटा दिया था।हालांकि अब मामला नए मोड़ पर है। सूत्रों के अनुसार, मंत्रालय और शासन के उच्च स्तरों पर इस फाइल को फिर से खोला गया है और अधिकारी की दोबारा तैनाती को लेकर गंभीर चर्चा चल रही है। बताया जा रहा है कि कई समितियों ने मामले की समीक्षा शुरू कर दी है और कुछ रिपोर्टों में पुनर्विचार की अनुशंसा भी सामने आई है। इसके चलते सरकारी तंत्र का रवैया ‘मेहरबानी’ जैसा दिखाई दे रहा है, जिसने भ्रष्टाचार और फर्जीवाड़े के खिलाफ पहले कड़ी कार्रवाई की थी, लेकिन अब उसी व्यक्ति को फिर से उसी पद पर स्थापित करने की तैयारी चर्चा का विषय बन गई है।
दून मेडिकल कॉलेज के अधिकारियों और स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों में भी इस प्रकरण को लेकर नाराज़गी है। एक ओर सरकार लगातार भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कदम उठाने का दावा करती है, वहीं दूसरी ओर इसी तरह के मामलों में ढिलाई या नरमी बरतना विभागीय अनुशासन पर प्रश्नचिह्न लगा रहा है। कर्मचारियों का कहना है कि यदि फर्जी दस्तावेजों के आधार पर नौकरी करने वाले को दोबारा तैनाती मिलती है, तो यह न केवल गलत संदेश देगा बल्कि भविष्य में ऐसे मामलों को बढ़ावा भी दे सकता है।सूत्रों का यह भी दावा है कि संबंधित व्यक्ति ने पिछले वर्षों में कई स्तरों पर अपीलें दायर की थीं, जिनमें से कुछ अब दोबारा सक्रिय हो गई हैं। उच्च स्तर पर बैठकों और चर्चाओं की बढ़ती आवृत्ति से संकेत मिल रहा है कि फाइल को तेजी से आगे बढ़ाया जा रहा है। हालांकि स्वास्थ्य विभाग के वरिष्ठ अधिकारी इस मामले पर कुछ भी कहने से बच रहे हैं।जनता और विभागीय कर्मचारियों के बीच यह चर्चा भी तेज है कि क्या शासन वास्तव में निष्पक्ष निर्णय लेगा या फिर किसी दबाव में इस मामले को मोड़ दिया जाएगा। यदि बर्खास्त अधिकारी को फिर से पदस्थापित किया जाता है, तो यह न केवल सरकारी कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करेगा, बल्कि मृतक आश्रित नीति की पारदर्शिता और विश्वसनीयता पर भी असर डालेगा।
फिलहाल सभी की निगाहें मंत्रालय के अंतिम निर्णय पर टिकी हैं। यह फैसला न केवल एक व्यक्ति की नौकरी से जुड़ा मामला है, बल्कि शासन की नीतिगत पारदर्शिता और भ्रष्टाचार के प्रति सख्ती की वास्तविकता की भी परीक्षा माना जा रहा है।


