देहरादून।
उत्तराखंड में इन दिनों सोशल मीडिया पर लगातार ऐसे वीडियो वायरल हो रहे हैं, जिनमें कुछ छुटभैया राजनेताओं पर गंभीर आरोप लग रहे हैं। बताया जा रहा है कि ये लोग भोली-भाली जनता को गुमराह कर न केवल धोखाधड़ी कर रहे हैं, बल्कि मानसिक दबाव डालकर युवाओं को आत्महत्या के लिए उकसाने तक का काम कर रहे हैं। हालात ऐसे हैं कि इन वायरल वीडियो में सीधे तौर पर आत्महत्या की चेतावनी दी जा रही है, मानो जैसे यह किसी “यूनिवर्सिटी” का हिस्सा हो जहां युवाओं को ऐसे खतरनाक कदम उठाने के लिए प्रेरित किया जा रहा हो।
जानकारों का कहना है कि अगर समय रहते इस तरह की गतिविधियों पर रोक नहीं लगी तो यह एक गंभीर सामाजिक संकट का रूप ले सकता है। जिन वीडियो में आत्महत्या जैसी बातों का जिक्र है, वे समाज के लिए बेहद खतरनाक संदेश दे रहे हैं। अगर इन वीडियो के पीछे किसी संगठित गिरोह या राजनीतिक मकसद की संलिप्तता है तो यह और भी चिंता का विषय है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस प्रकार का मानसिक दबाव युवाओं की ज़िंदगी को खत्म कर रहा है और यह सीधे-सीधे समाज के खिलाफ अपराध है।
राज्य में इस प्रकार के वीडियो वायरल होने के बाद आम लोगों में आक्रोश है। परिजनों का कहना है कि ऐसी घटनाओं से युवाओं का भविष्य अंधकारमय हो रहा है। कई परिवार अपने बच्चों की सुरक्षा और मानसिक स्थिति को लेकर भयभीत हैं। लोग सवाल उठा रहे हैं कि आखिर सिस्टम ऐसे मामलों में अब तक गंभीर कार्रवाई क्यों नहीं कर पा रहा है।
राजनीतिक हलकों में भी यह मुद्दा तूल पकड़ने लगा है। विपक्ष का कहना है कि सरकार युवाओं की भावनाओं से जुड़े इस संवेदनशील मुद्दे पर चुप क्यों है। वहीं सत्तापक्ष का दावा है कि मामले की जांच कराई जा रही है और किसी भी दोषी को बख्शा नहीं जाएगा।
विशेषज्ञों की राय है कि सरकार को तत्काल ऐसे मामलों पर ठोस कदम उठाने चाहिए। सबसे पहले यह पता लगाया जाए कि इस तरह की “यूनिवर्सिटी” या नेटवर्क कहां से संचालित हो रहा है, जो युवाओं को आत्महत्या जैसे कदम के लिए प्रेरित कर रहा है। यदि जल्द कार्रवाई नहीं हुई तो यह चलन युवाओं के भविष्य के लिए बेहद घातक साबित हो सकता है।
जनता की अपेक्षा है कि सरकार दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करे, ताकि किसी मां को अपने बेटे से और किसी परिवार को अपने लाल से जुदा होने का दर्द न झेलना पड़े।
