देहरादून। राज्य का पुलिस महकमा एक बार फिर चर्चाओं और सवालों के घेरे में आ गया है। मामला राजधानी के राजपुर थाने से जुड़ा है, जहां पिछले दो दिनों में घटनाक्रम ने पूरे सिस्टम की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
दरअसल, दो रोज पहले राजपुर थाने में विवाद होने के बाद तत्कालीन एसओ शेंकी कुमार को निलंबित कर दिया गया। विभाग ने उनकी जगह कालसी थाने के एसओ दीपक धारीवाल को राजपुर थाने की कमान सौंप दी। मगर हैरानी की बात यह रही कि महज 18 घंटे के भीतर ही आदेश पलट गया और दीपक धारीवाल को वापस कालसी भेज दिया गया। नई दलील दी गई कि राजपुर थाना इंस्पेक्टर रैंक के अधिकारी के लिए आरक्षित है।
यह तर्क इसलिए सवालों के घेरे में है क्योंकि अब तक राजपुर थाना दरोगा स्तर के अधिकारियों द्वारा ही संचालित किया जाता रहा है। ऐसे में अचानक यह नियम लागू करना किसी के गले नहीं उतर रहा है। सूत्र बताते हैं कि इस निर्णय के पीछे पुलिस महकमे की अंदरूनी खींचतान और उच्चस्तरीय दबाव काम कर रहा है। सवाल यह भी है कि जब अन्य कई थाने, जो इंस्पेक्टर रैंक के लिए आरक्षित हैं, अभी भी दरोगा स्तर के अधिकारियों के हवाले चल रहे हैं, तो फिर केवल राजपुर थाने में यह व्यवस्था क्यों लागू की गई?
स्थानीय स्तर पर इस पूरे घटनाक्रम को लेकर कयासबाजियां तेज हैं। पुलिस की साख पर भी प्रश्नचिह्न लग रहा है, क्योंकि पोस्टिंग और ट्रांसफर जैसे संवेदनशील मामलों को लेकर विभाग लगातार विवादों में घिरता जा रहा है। वरिष्ठ पुलिस अधिकारी का पत्र के अनुसार तर्क है कि व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए यह कदम उठाया गया है,
राजपुर थाना, राजधानी का बेहद संवेदनशील थाना माना जाता है। यहां वीआईपी मूवमेंट और कई अहम इलाके आते हैं। ऐसे में अधिकारी की तैनाती को लेकर बार-बार फैसले पलटने से पुलिस विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं।
कुल मिलाकर, राजपुर थाने में 18 घंटे के भीतर हुए इस फेरबदल ने साफ कर दिया है कि पुलिस महकमे में अब भी पारदर्शिता और स्थिरता की भारी कमी है। यही वजह है कि जनता और जानकार दोनों ही यह सवाल उठा रहे हैं कि आखिर नियम-कानून सिर्फ चुनिंदा थानों पर ही क्यों लागू होते हैं और क्या वास्तव में यह निर्णय पेशेवर दृष्टिकोण से लिया गया या फिर किसी दबाव का परिणाम है।
