प्रदेश में विपक्ष की रणनीति पर सवाल, कांग्रेस मुद्दों के बीच क्यों बदल रही दिशा….? उपनल छोड़ भालू के मुद्दे पर पहुंचे वन मुख्यालय..

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देहरादून। प्रदेश की राजनीति में इन दिनों एक अलग ही तस्वीर देखने को मिल रही है, जहां विपक्ष मुद्दों की तलाश में भटकता हुआ नजर आ रहा है। लगातार दूसरे के आंदोलनों को हाइजैक करने की आदत से घिरा विपक्ष अब अपनी ही रणनीति के जाल में भ्रमित होता दिखाई दे रहा है। ताजा उदाहरण उपनल कर्मचारियों के आंदोलन से जुड़ा है, जिसे लेकर कांग्रेस मुख्यमंत्री आवास कूच की तैयारी में थी, लेकिन अचानक कांग्रेस को भालू के हमले की याद आ गई और पूरा नेतृत्व दिशा बदलते हुए सीधे वन मुख्यालय पहुंच गया। इस घटनाक्रम ने राजनीतिक गलियारों में कई सवाल खड़े कर दिए हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि कांग्रेस का यह कदम उनकी रणनीतिक कमजोरी को उजागर करता है। जिस समय उपनल कर्मचारियों के मुद्दे पर सरकार से आमने-सामने होने की जरूरत थी, उसी समय कांग्रेस का फोकस बदल जाना प्रदेशभर में पार्टी की गंभीरता पर सवाल खड़े कर रहा है। हालांकि कांग्रेस नेताओं का कहना है कि भालू हमले की घटना भी महत्वपूर्ण है और उसका संज्ञान लेना जरूरी था, लेकिन पार्टी का अचानक मोर्चा बदलना विपक्ष की अस्थिरता को दर्शाता है।सूत्रों के अनुसार, कांग्रेस नेताओं की इस असमंजस की स्थिति के पीछे हाल ही में बिहार में मिली हार भी एक अहम वजह मानी जा रही है। जानकार बताते हैं कि बिहार में चुनावी शिकस्त को कांग्रेस अभी तक पचा नहीं पा रही है। इसका असर उत्तराखंड की राजनीति में भी साफ दिखाई दे रहा है, जहां पार्टी लगातार मुद्दों के बीच तालमेल बिठाने में विफल हो रही है। पहले कर्मचारियों के आंदोलन का रुख अपनाना और फिर अचानक वन मुख्यालय पहुंच जाना इस बात का संकेत है कि प्रदेश में कांग्रेस की रणनीति अभी तय नहीं हो पा रही है। प्रदेश में सत्ताधारी भाजपा इस मौके का स्पष्ट राजनीतिक लाभ उठा रही है। पार्टी नेताओं का कहना है कि विपक्ष की कमजोर स्थिति और दिशाहीन रणनीति से यह साबित होता है कि कांग्रेस के पास न तो नेतृत्व की स्पष्टता है और न ही धरातली मुद्दों को उठाने की क्षमता। भाजपा नेता इसे जनता के साथ कांग्रेस की बढ़ती दूरी का उदाहरण बता रहे हैं।
कुल मिलाकर, उत्तराखंड की राजनीति में विपक्ष की यह स्थिति राजनीतिक संतुलन को प्रभावित कर रही है। जहां एक तरफ सरकार लगातार विकास और प्रशासनिक मजबूती के एजेंडे पर आगे बढ़ने का दावा कर रही है, वहीं विपक्ष अपनी ही प्राथमिकताओं को तय नहीं कर पा रहा। आने वाले समय में कांग्रेस इस भटकाव से उभर पाती है या नहीं, यह देखना राजनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण होगा।