राज्य में मेडिकल कॉलेज जल्द होंगे कार्यवाह प्राचार्यों के चंगुल से बाहर, अस्थायी से स्थाई व्यवस्था की ओर आगे बढ़ेंगे मेडिकल कॉलेज..

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देहरादून: उत्तराखंड को बने हुए 25 वर्ष पूरे हो चुके हैं, लेकिन चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण खामी आज तक दूर नहीं हो सकी थी — और वह है मेडिकल कॉलेजों में स्थायी प्राचार्य की नियुक्ति। अब पहली बार ऐसा मौका आया है जब प्रदेश के सभी राजकीय मेडिकल कॉलेजों में प्राचार्य पद के लिए स्थायी नियुक्ति की प्रक्रिया शासन स्तर पर शुरू की गई है। वरिष्ठता के आधार पर स्थायी प्राचार्य नियुक्त करने की तैयारी चल रही है।

राज्य में वर्तमान में संचालित सात राजकीय मेडिकल कॉलेजों — दून मेडिकल कॉलेज देहरादून, श्रीनगर मेडिकल कॉलेज, हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज, पिथौरागढ़, अल्मोड़ा , रुद्रपुर और हरिद्वार मेडिकल कॉलेज — में अब तक कार्यवाहक या प्रभारी प्राचार्य के भरोसे ही व्यवस्थाएं चलाई जा रही थीं। यह स्थिति न केवल प्रशासनिक दृष्टि से अस्थिरता का कारण बनी, बल्कि अकादमिक गुणवत्ता और निर्णय लेने की क्षमता पर भी असर पड़ा।

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अब धामी सरकार की ओर से इसे लेकर गंभीरता दिखाई जा रही है और शासन स्तर पर वरिष्ठता सूची तैयार की जा रही है। उम्मीद जताई जा रही है कि अगस्त 2025 तक सभी मेडिकल कॉलेजों को स्थायी प्राचार्य मिल जाएंगे। सूत्रों के अनुसार, सचिवालय में बैठकों का दौर चल रहा है और वरिष्ठ चिकित्सकों की पात्रता की जांच की जा रही है। इसके बाद डीपीसी और चयन की प्रक्रिया को अंतिम रूप दिया जाएगा।

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विशेषज्ञों और स्वास्थ्य शिक्षा से जुड़े लोगों का मानना है कि यह निर्णय लंबे समय से अपेक्षित था। स्थायी प्राचार्य की नियुक्ति से कॉलेजों में निर्णय क्षमता बढ़ेगी, प्रशासनिक सुचारूता आएगी और विद्यार्थियों को भी बेहतर मार्गदर्शन मिलेगा। अब तक “कामचलाऊ व्यवस्था” अपनाकर चिकित्सा शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र में गंभीर निर्णय लिए जाते रहे, जो कि एक विकसित होते राज्य के लिए चिंताजनक बात रही है।

उत्तराखंड मेडिकल शिक्षक भी लंबे समय से इस पर चर्चा करते रहे है । उनका कहना है कि कार्यवाहक प्राचार्य अक्सर निर्णय लेने में हिचकिचाते हैं क्योंकि उनके पास पूर्ण अधिकार नहीं होते। स्थायी नियुक्तियों से यह स्थिति बदलेगी। माना जा रहा है कि सरकार मेडिकल कॉलेजों को शिक्षा और शोध के क्षेत्र में बेहतर बनाने के लिए ठोस कदम उठा रही है। स्थायी प्राचार्य व्यवस्था इसी दिशा में पहला महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।

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अब देखना यह होगा कि वर्षों से लटकती आ रही यह व्यवस्था आखिरकार कितनी समयबद्धता के साथ पूरी की जाती है, ताकि उत्तराखंड के मेडिकल संस्थानों की साख और गुणवत्ता में वांछित सुधार लाया जा सके।