देहरादून। उत्तरकाशी में हाल ही में आई आसमानी आफत ने जहां जनजीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया है, वहीं राहत एवं पुनर्वास कार्यों के बीच प्रशासन को एक नई चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। सरकार और प्रशासन लगातार मौके पर राहत, बचाव और पुनर्स्थापना के कार्यों में जुटे हुए हैं। मुख्यमंत्री से लेकर जिला प्रशासन तक, हर स्तर पर लापता लोगों, मौत के आंकड़ों और रेस्क्यू ऑपरेशनों की सटीक जानकारी जुटाकर जनता को अवगत कराया जा रहा है। इसके बावजूद, सिस्टम के भीतर और बाहर, कुछ ऐसे तत्व सक्रिय हैं जो झूठी व भ्रामक सूचनाएं फैलाकर न केवल जनता में भ्रम पैदा कर रहे हैं, बल्कि सरकारी तंत्र की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़े कर रहे हैं।सूत्रों के मुताबिक, इन ‘विभीषणों’ के कारण आपदा प्रबंधन में जुटे प्रशासनिक अधिकारियों को अतिरिक्त दबाव झेलना पड़ रहा है। एक ओर, सरकार के पास मौके से जुटाई गई वास्तविक रिपोर्टें हैं, तो दूसरी ओर, सोशल मीडिया और कुछ गैर-जिम्मेदाराना बयानों के माध्यम से गलत आंकड़े और तथ्य फैलाए जा रहे हैं। यह स्थिति न केवल प्रभावित परिवारों की मानसिक पीड़ा को बढ़ा रही है, बल्कि राहत कार्यों में लगे कर्मचारियों और स्वयंसेवकों के मनोबल पर भी नकारात्मक असर डाल रही है।
उत्तरकाशी आपदा के बाद से ही सरकार ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि सभी आधिकारिक सूचनाएं राज्य आपदा प्रबंधन विभाग, जिला प्रशासन और सरकारी प्रवक्ताओं के माध्यम से ही साझा की जाएं। इसका मकसद था कि जनता तक केवल सत्य और प्रमाणित जानकारी पहुंचे। लेकिन, कुछ ‘भीतरघाती’ मानसिकता वाले लोग—जो सिस्टम का हिस्सा भी हो सकते हैं—गैर-प्रमाणित सूचनाएं लीक कर रहे हैं। इन खबरों में कभी लापता लोगों की संख्या को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जा रहा है, तो कभी मौत के आंकड़ों को गलत तरीके से प्रसारित किया जा रहा है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि किसी भी आपदा के समय अफवाहें, वास्तविक राहत कार्यों को धीमा कर देती हैं। इससे संसाधनों के गलत दिशा में उपयोग का खतरा बढ़ जाता है, और जनता के बीच अविश्वास का माहौल बनता है। यही कारण है कि सरकार के लिए अब यह जरूरी हो गया है कि इन ‘विभीषणों’ की पहचान कर, इनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए।
मुख्यमंत्री ने हाल ही में अधिकारियों को निर्देश दिए कि राहत कार्यों के साथ-साथ सूचना प्रबंधन को भी प्राथमिकता दी जाए। उन्होंने कहा कि “आपदा में अफवाहें दूसरी बड़ी आपदा बन सकती हैं। जो लोग झूठी सूचनाएं फैलाकर लोगों को गुमराह कर रहे हैं, उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई होगी।”
वर्तमान हालात में, प्रशासनिक तंत्र का फोकस दो मोर्चों पर है—पहला, आपदा प्रभावित क्षेत्रों में बचाव और पुनर्वास कार्य; दूसरा, जनता तक सही और प्रमाणित सूचना पहुंचाना। इसके लिए सोशल मीडिया सेल सक्रिय किया गया है, और हर अपडेट के साथ अफवाहों का खंडन भी किया जा रहा है।
उत्तरकाशी आपदा ने यह साफ कर दिया है कि प्राकृतिक आपदा से लड़ने के लिए केवल संसाधन और जनशक्ति ही पर्याप्त नहीं हैं, बल्कि सही और पारदर्शी सूचना प्रबंधन भी उतना ही जरूरी है। जब तक ‘विभीषणों’ की पहचान कर उन्हें रोक नहीं दिया जाता, तब तक राहत कार्यों की रफ्तार और सरकार की साख, दोनों पर खतरा मंडराता रहेगा।
