देहरादून, राजधानी के सरकारी अस्पतालों में मरीजों के प्रति लापरवाही का एक और गंभीर मामला सामने आया है। बताया जा रहा है कि पूर्व अपर सचिव की पत्नी की तबीयत देर रात अचानक बिगड़ गई, जिसके बाद उनका बेटा उन्हें तत्काल इलाज के लिए जिला अस्पताल कोरोनेशन लेकर पहुंचा। लेकिन वहां मौजूद डॉक्टरों ने इलाज करने से इनकार कर दिया। इस दौरान मरीज की हालत लगातार बिगड़ती रही, मगर अस्पताल स्टाफ ने कोई सहायता प्रदान नहीं की।
मरीज के परिजनों के अनुसार, जब कोरोनेशन अस्पताल से मदद नहीं मिली, तो वे उन्हें रात करीब 2:15 बजे दून अस्पताल लेकर पहुंचे। लेकिन यहां भी स्थिति पहले से बेहतर नहीं रही। दून अस्पताल के स्टाफ ने उन्हें यह कहकर लौटा दिया कि डॉक्टर सुबह 8 बजे आएंगे, तभी इलाज संभव होगा। गंभीर हालत में मरीज को इस तरह से घंटों तक इंतजार करने को कहना, स्वास्थ्य विभाग की संवेदनहीनता को उजागर करता है।
आखिरकार परिजनों ने मजबूरी में मरीज को एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया। वहां डॉक्टरों ने जांच के बाद बताया कि मरीज को हार्ट अटैक आया था और समय पर इलाज न मिलने से स्थिति और बिगड़ सकती थी। हालांकि निजी अस्पताल में तत्काल उपचार मिलने से उनकी जान बच गई, लेकिन यह घटना सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्थाओं की पोल खोलने के लिए पर्याप्त है।
पूर्व अपर सचिव ने इस पूरे मामले की शिकायत उत्तराखंड के मुख्य सचिव से की है। उन्होंने मांग की है कि इस लापरवाही की उच्चस्तरीय जांच कर दोषी डॉक्टरों और अस्पताल कर्मियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए।
यह घटना उस समय पर गंभीर प्रश्न खड़े करती है जब राज्य सरकार स्वास्थ्य सेवाओं को सुदृढ़ बनाने के दावे कर रही है। सवाल यह उठता है कि अगर राजधानी में स्थित सरकारी अस्पतालों में भी मरीजों को समय पर इलाज नहीं मिल पा रहा, तो दूरदराज के क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं का हाल क्या होगा?
जनता के लिए बने सरकारी अस्पतालों में यदि संवेदनशीलता और जिम्मेदारी का अभाव रहेगा, तो आम जनता के पास निजी अस्पतालों की शरण लेने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा। यह मामला न केवल एक परिवार के लिए पीड़ा का कारण बना है, बल्कि पूरे स्वास्थ्य तंत्र के लिए एक चेतावनी भी है।
