देहरादून। राजधानी का प्रमुख चिकित्सा संस्थान दून मेडिकल कॉलेज इन दिनों लगातार सुर्खियों में बना हुआ है — लेकिन वजह गर्व की नहीं, चिंता की है। एक के बाद एक सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियो संस्थान की वर्तमान स्थिति पर गंभीर सवाल खड़े कर रहे हैं। कभी मरीजों की परेशानियां, कभी अनुशासनहीनता और कभी लचर व्यवस्थाएं — इन सबके बीच अब कॉलेज प्रशासन की कार्यप्रणाली पर उंगलियां उठने लगी हैं। जो संस्थान कभी व्यवस्था और अनुशासन का उदाहरण माना जाता था, वहीं आज अव्यवस्था का अड्डा बनता जा रहा है। अस्पताल परिसर में भीड़भाड़, मरीजों को समय पर इलाज न मिलना, और व्यवस्था का अभाव जैसी शिकायतें आम हो गई हैं। कई वीडियो में देखा गया है कि मरीजों को बुनियादी सुविधाओं के लिए भटकना पड़ता है , वहीं स्टाफ और डॉक्टरों के बीच समन्वय की कमी भी साफ नजर आ रही है।
इसी पृष्ठभूमि में अब एक नाम लगातार चर्चा में आ रहा है — डॉ. आशुतोष सयाना। दून मेडिकल कॉलेज के पूर्व प्राचार्य और वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. सयाना ने अपने कार्यकाल में कॉलेज की व्यवस्थाओं को जिस सख्ती और अनुशासन से संभाला था, वह आज भी लोगों को याद है। उनके कार्यकाल में कॉलेज न केवल चिकित्सा सेवाओं में बल्कि प्रशासनिक अनुशासन में भी एक मिसाल बना था। डॉ. सयाना के समय कॉलेज में मरीजों की शिकायतें न्यूनतम थीं। डॉक्टरों और स्टाफ में जवाबदेही की स्पष्ट व्यवस्था थी। कॉलेज परिसर में स्वच्छता, समयबद्ध ओपीडी और पारदर्शी सिस्टम उनकी प्राथमिकता में थे। यही वजह रही कि उनके रहते कॉलेज की छवि राज्य के सर्वश्रेष्ठ चिकित्सा संस्थानों में गिनी जाती थी। लेकिन अब हालात तेजी से बदले हैं। डॉ. सयाना के स्थानांतरण के बाद कॉलेज में वह सख्त और पारदर्शी प्रशासनिक दृष्टिकोण गायब हो गया है। स्टाफ और छात्रों में अनुशासन की कमी दिखाई दे रही है। मरीजों की परेशानियां बढ़ी हैं और कॉलेज के अंदर कई बार ऐसे वीडियो सामने आए हैं जिनमें मरीजों की सुध लेने वाला कोई नहीं होता।
स्थानीय लोगों और कॉलेज से जुड़े कर्मचारियों का कहना है कि “डॉ. सयाना जैसे अधिकारी ही कॉलेज को फिर से पटरी पर ला सकते हैं। उनके समय में किसी भी तरह की लापरवाही या गैर-जिम्मेदारी की गुंजाइश नहीं रहती थी।” अब सवाल यह है कि प्रदेश सरकार और चिकित्सा शिक्षा विभाग इस बिगड़ते हालात पर कब और कैसे संज्ञान लेगा? क्या दून मेडिकल कॉलेज फिर से अपने उस सुनहरे दौर में लौट पाएगा जब यहां व्यवस्था, अनुशासन और चिकित्सा सेवा तीनों साथ-साथ चलते थे?
फिलहाल, जनता और मरीजों की नजरें सरकार और प्रशासन पर टिकी हैं। क्योंकि यह कॉलेज केवल देहरादून या उत्तराखंड का नहीं, बल्कि पूरे गढ़वाल अंचल के मरीजों की उम्मीद का केंद्र है — और इसकी व्यवस्था का सुधरना प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था की विश्वसनीयता से सीधे तौर पर जुड़ा है।
