सीएम धामी की शानदार रणनीति, नफरत से नहीं मुहब्बत से कराया आंदोलन शांत, षड्यंत्रकारियों और विरोधियों का मुंह बंद….

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देहरादून। उत्तराखंड की राजनीति में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी एक बार फिर अपनी रणनीति और दूरदर्शिता के चलते सुर्खियों में आ गए हैं। बीते पांच दिनों से चल रहे युवाओं के आंदोलन पर धामी ने न केवल सीधा संवाद किया बल्कि उनकी मांगों को स्वीकार कर एक नया संदेश भी दिया। यह पहली बार हुआ है जब किसी मुख्यमंत्री ने आंदोलन स्थल पर जाकर सीधे आंदोलनरत युवाओं से बात की और उनकी समस्याओं का समाधान खोजने का भरोसा दिया। धामी के इस कदम से जहां युवाओं में नई उम्मीद जगी है, वहीं विरोधियों के मंसूबों पर पानी फिर गया है।पिछले पांच दिनों से राजधानी देहरादून में कथित पेपर लीक मामले की जांच और पारदर्शी भर्ती प्रक्रिया की मांग को लेकर युवा धरने पर बैठे थे। अपने और पराए इस आंदोलन को हवा देने में जुटे थे और सरकार के खिलाफ माहौल बनाने की कोशिश की जा रही थी। मगर मुख्यमंत्री धामी ने अचानक आंदोलन स्थल पहुंचकर जिस तरह युवाओं को भरोसा दिलाया, उससे हालात बदल गए। धामी ने न केवल सीबीआई जांच की मांग को स्वीकार करने की सहमति दी, बल्कि युवाओं की अन्य जायज मांगों पर भी ठोस निर्णय लेने का आश्वासन दिया। विशेषज्ञ मानते हैं कि यह कदम धामी की राजनीतिक समझ और रणनीतिक क्षमता को दर्शाता है। आमतौर पर आंदोलन को लेकर सरकार टकराव का रास्ता अपनाती रही है, लेकिन धामी ने संवाद को हथियार बनाया और विरोधियों को बैकफुट पर धकेल दिया। उनका यह कदम युवाओं में यह संदेश देने में सफल रहा कि सरकार उनकी समस्याओं के समाधान के लिए गंभीर है। धामी की इस पहल के बाद विरोधियों द्वारा फैलाए जा रहे भ्रम और षड्यंत्र की हवा निकल गई। चार दिनों से आंदोलन को लेकर विपक्ष सरकार को कठघरे में खड़ा कर रहा था, लेकिन अब हालात पलट गए हैं। आंदोलनकारी युवाओं ने भी मुख्यमंत्री के आश्वासन पर भरोसा जताया और इसे सकारात्मक पहल करार दिया।
राजनीतिक पंडितों का कहना है कि धामी की यह रणनीति साफ कर देती है कि वह केवल तात्कालिक समाधान नहीं, बल्कि दूरगामी सोच के साथ कदम बढ़ा रहे हैं। युवाओं को साथ लेकर चलने की उनकी नीति राज्य में नई ऊर्जा और भरोसे का वातावरण तैयार कर रही है। यह भी माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री का यह कदम आने वाले समय में उनके लिए राजनीतिक पूंजी का काम करेगा। युवाओं के बीच धामी की छवि लगातार मजबूत हो रही है। भर्ती घोटालों और पेपर लीक जैसी घटनाओं से नाराज युवा वर्ग अब यह महसूस कर रहा है कि सरकार उनकी भावनाओं को समझती है और उनके लिए ठोस कार्रवाई करने को तैयार है। सीबीआई जांच पर सहमति जताना इसी दिशा में बड़ा संकेत है।सामाजिक कार्यकर्ताओं का भी कहना है कि युवाओं से सीधे संवाद करना और उनकी मांगों को स्वीकार करना लोकतांत्रिक मूल्यों की सबसे बड़ी मिसाल है। धामी का यह कदम अन्य राज्यों के लिए भी एक उदाहरण हो सकता है, जहां आंदोलन को अक्सर बल प्रयोग से दबाने की कोशिश होती है। कुल मिलाकर, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस बार अपनी सूझबूझ और दूरदर्शिता से न केवल युवाओं के आंदोलन को शांत किया, बल्कि यह भी साबित कर दिया कि राजनीति केवल आरोप-प्रत्यारोप का खेल नहीं है, बल्कि संवाद और संवेदनशीलता के माध्यम से भी जनता का भरोसा जीता जा सकता है। यह कदम न केवल उनकी राजनीतिक परिपक्वता का परिचायक है, बल्कि युवाओं में भविष्य की नई उम्मीद जगाने वाला भी है।