देहरादून, 27 मार्च 2025 – उत्तराखंड के सबसे बड़े सरकारी मेडिकल कॉलेज दून मेडिकल कॉलेज में इस वित्तीय वर्ष में बजट और प्रशासनिक कार्यों पर संकट के बादल मंडराते नजर आ रहे हैं। जहां राज्य सरकार ने वित्तीय वर्ष की समाप्ति को देखते हुए छुट्टी के दिन भी विभागों में काम करने के आदेश जारी किए हैं, वहीं दून मेडिकल कॉलेज के अधिकारियों की उदासीनता के चलते यहां का बजट लैप्स होने की कगार पर पहुंच गया है।
साइनिंग अथॉरिटी की गैरमौजूदगी बनी बाधा
मेडिकल कॉलेज में कई महत्वपूर्ण कार्य साइनिंग अथॉरिटी (हस्ताक्षर करने वाले अधिकारी) की गैरमौजूदगी के कारण अटके हुए हैं। बताया जा रहा है कि संबंधित अधिकारी एक्जाम ड्यूटी पर गए हुए हैं और अब 29 मार्च को लौटेंगे। ऐसे में 30 मार्च को साप्ताहिक अवकाश और 31 मार्च को ईद का त्यौहार होने के कारण जरूरी वित्तीय प्रक्रियाएं पूरी नहीं हो पाएंगी, जिससे इस साल का बजट लैप्स हो सकता है।
आमतौर पर मार्च के आखिरी दिनों में विभागों में बजट से संबंधित सभी कार्य तेजी से पूरे किए जाते हैं, ताकि किसी भी प्रकार की वित्तीय हानि न हो। लेकिन दून मेडिकल कॉलेज में प्रशासनिक सुस्ती और लापरवाही के कारण इस बार बजट के सही इस्तेमाल पर गंभीर संकट खड़ा हो गया है।
वित्तीय वर्ष के अंत में तेजी से होना था काम
मार्च के अंतिम सप्ताह में राज्य सरकार ने सभी विभागों को निर्देश दिया था कि वित्तीय वर्ष समाप्त होने से पहले सभी लंबित कार्यों को पूरा किया जाए। कई विभागों ने इस आदेश को गंभीरता से लेते हुए छुट्टी के दिन भी दफ्तर खोलकर काम किए जाने की तैयारी की जा रही, लेकिन दून मेडिकल कॉलेज में स्थिति ठीक इसके विपरीत नजर आ रही है।
यहां न केवल अधिकारी अनुपस्थित हैं, बल्कि जो कार्य तेजी से किए जाने चाहिए थे, वे भी रुके हुए हैं। मेडिकल कॉलेज में बिलों के भुगतान, नई मशीनों की खरीद, मेंटेनेंस व अन्य प्रशासनिक मंजूरी से जुड़े कई अहम कार्य अधर में लटके हैं। यदि 31 मार्च से पहले यह कार्य पूरे नहीं हुए, तो इसका सीधा असर कॉलेज के बजट और विकास योजनाओं पर पड़ेगा।
स्वास्थ्य सेवाओं पर पड़ सकता है असर
दून मेडिकल कॉलेज प्रदेश का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल होने के साथ-साथ मेडिकल छात्रों की पढ़ाई और रिसर्च के लिए भी अहम केंद्र है। यहां खरीदारी, मेंटेनेंस, दवाओं की आपूर्ति और अन्य स्वास्थ्य सेवाओं के लिए बजट का सही समय पर उपयोग बेहद जरूरी है। यदि बजट लैप्स होता है, तो अगले वित्तीय वर्ष में जरूरी सेवाओं के लिए फंडिंग में देरी हो सकती है, जिससे मरीजों और मेडिकल छात्रों दोनों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।
अधिकारियों की लापरवाही पर उठ रहे सवाल
मेडिकल कॉलेज में वित्तीय संकट के इस हालात को लेकर प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल उठने लगे हैं। जानकारों का कहना है कि समय पर फंड रिलीज नहीं हुआ तो आने वाले महीनों में अस्पताल की व्यवस्थाएं प्रभावित हो सकती हैं।
अब देखने वाली बात होगी कि साइनिंग अथॉरिटी के लौटने के बाद बचा हुआ काम कितनी तेजी से निपटाया जाता है, या फिर यह संकट अगले वित्तीय वर्ष में कॉलेज की व्यवस्थाओं पर असर डालेगा।

